5 Wakt ki Qaza Namaz ka Tarika | क़ज़ा ए उमरी का मुकम्मल तरीका

क़ज़ा नमाज़ का तरीका जानना हर मुसलमान के लिए जरूरी है, खासकर जब किसी वजह से फर्ज़ नमाज़ें रह जाती हैं। इस पोस्ट में हम Qaza Namaz ka Tarika और Qaza e Umri ka Tarika पर बात करेंगे। कई बार जिंदगी की बीमारी या दूसरी वजहों से नमाज़ें कज़ा हो जाती हैं, ऐसे में उनका हिसाब रखना और सही तरीके से पढ़ना जरूरी होता है। क़ज़ा नमाज़ की नियत और उसकी अदायगी के सही तरीके को समझकर हम अल्लाह की रज़ा और खुशनुदी हासिल कर सकते हैं।

5 Waqt ki Qaza Namaz Padhne ka Tarika

यह पोस्ट आपको बताएगा कि क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करनी है और किन बातों का ध्यान रखना है, ताकि आपकी इबादतें कबूल हों और गुनाह माफ़ हों। हम आपको क़ज़ा नमाज़ की पूरी प्रक्रिया समझाएंगे, ताकि आप इसे अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल कर सकें।

क़ज़ा नमाज़ क्या होती है?

क़ज़ा नमाज़ वह नमाज़ होती है जो तय वक्त पर नहीं पढ़ी जा सकी और बाद में अदा की जाती है। इस्लाम में हर मुसलमान पर पांच वक्त की नमाज़ फर्ज़ है, लेकिन कभी-कभी मजबूरी या भूलवश नमाज़ छूट जाती है। ऐसे हाल में, नमाज़ को क़ज़ा के तौर में अदा करना जरूरी होता है।

क़ज़ा नमाज़ सिर्फ फर्ज़ और वाजिब नमाज़ों के लिए होती है, और इसकी नियत करना भी ज़रूरी है। इसे पढ़कर हम अल्लाह से माफी मांगने और उसकी रज़ा पाने की कोशिश करते हैं, जिससे गुनाह माफ़ हो सकते हैं।

क़ज़ा ए उमरी क्या है?

क़ज़ा ए उमरी का मतलब है उन तमाम फर्ज़ और वाजिब नमाज़ों की क़ज़ा करना जो किसी इंसान की जिंदगी में रह गई हों। यह उन नमाज़ों के लिए होता है जो किसी वजह से समय पर अदा नहीं की गईं, जैसे बीमारी, मजबूरी, या भूलवश। क़ज़ा ए उमरी के जरिए, मुसलमान अपनी पिछली छूटी हुई नमाज़ों का हिसाब रखते हुए उन्हें धीरे-धीरे अदा करते हैं।

5 Wakt Ki Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika

5 वक्त की क़ज़ा नमाज़ की नियत और क़ज़ा ए उमरी की नियत हमने 5 वक्त की कज़ा नमाज़ की नियत हिंदी में बताया है इसके अलावा नीचे और डिटेल में हमने बताया हैं।

यहाँ सभी 5 वक्त की क़ज़ा नमाज़ की नियत का तरीका बताया गया है:

  1. फज्र की क़ज़ा नमाज़:
  • नियत की, मैंने फज्र की 2 रकात क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”
  1. ज़ोहर की क़ज़ा नमाज़:
  • नियत की, मैंने ज़ोहर की 4 रकात क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”
  1. असर की क़ज़ा नमाज़:
  • नियत की, मैंने असर की 4 रकात क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”
  1. मगरिब की क़ज़ा नमाज़:
  • नियत की, मैंने मगरिब की 3 रकात क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”
  1. ईशा की क़ज़ा नमाज़:
  • नियत की, मैंने ईशा की 4 रकात क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”
  • नियत की, मैंने ईशा की 3 रकात वाजिब क़ज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ। “अल्लाहु अकबर”

इन नियतों के साथ, आप अपनी क़ज़ा नमाज़ अदा कर सकते हैं। नियत का साफ और दिल से होना जरूरी है।

क़ज़ा ए उमरी की नियत का तरीका

जब आप क़ज़ा ए उमरी की नमाज़ पढ़ने की नियत करें तो दिल में यह तय करें कि यह नमाज़ उन छूटी हुई फर्ज़ या वाजिब नमाज़ों की क़ज़ा है, जो आपकी जिंदगी में रह गई थीं।

क़ज़ा ए उमरी का तरीका बिलकुल ऊपर दिए हुए तरीके जैसा ही है। अगर आपके जिम्मे कई सालों की क़ज़ा नमाज़ है तो उसका हिसाब लगा लें और जब भी नमाज़ के लिए खड़े हो तो कहे: “नियत की मैने फज्र/ज़ोहर/असर/मगरिब/ईशा की सबसे पहली क़ज़ा नमाज़ की” फिर उसके बाद वही कहना है जो आम नमाज़ में कहा जाता हैं। इस तरह आपके जिम्मे जितनी भी क़ज़ा नमाज़ है उसे पूरा करें।

क़ज़ा नमाज़ कब पढ़े?

क़ज़ा नमाज़ मकरूह वक्त के अलावा किसी भी वक्त पढ़ी जा सकती हैं। नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह है और गुनाह को लोगो के बताना और भी गुनाह है ऐसे में क़ज़ा नमाज़ अकेले में पढ़ना बेहतर हैं।

इसके अलावा क़ज़ा नमाज़ नफ्ल नमाज़ों से ज्यादा अहम है। क्योंकि क़ज़ा नमाज़ जब तक पूरी न हो जाएं नफ्ल नमाज़ कुबूल नहीं होती हैं। लिहाज़ा ज़ोहर की आखरी दो नफ्ल नमाज़, असर की पहली चार रकात, मगरिब की आखरी दो रकात और ईशा की पहली चार रकात की जगह क़ज़ा नमाज़ पढ़ी जा सकती हैं।

Qazaa Namaz ka Tarika

क़ज़ा नमाज़ ठीक उसी तरह पढ़ी जाती हैं जिस तरह आम फर्ज़ या वाजिब नमाज़ पढ़ी जाती हैं। आपकी आसानी के लिए इसका मुकम्मल तरीका नीचे बताया जा रहा हैं।

नीचे दिए हुए स्टेप्स को फॉलो करते हुए आप 5 वक्त की क़ज़ा नमाज़ सिख सकते हैं।

Note: यहां पर आपको 4 रकात नमाज़ का तरीका स्टेप बाय स्टेप बताया गया है।

Fajr ki Qaza Namaz ka Tareeqa

उपर दिए हुए स्टेप्स को फॉलो करते हुए हम फज्र की क़ज़ा नमाज़ का तरीका जानेंगे। फज्र की क़ज़ा पढ़ने के लिए पहले स्टेप से लेकर 30 स्टेप को फॉलो करें इसके बाद 53 स्टेप से लेकर आखरी स्टेप को फॉलो करें.

Zohar and Asr ki Qaza Namaz ka Tarika

ज़ोहर और असर की क़ज़ा नमाज़ के लिए आपको सभी 62 स्टेप्स को फॉलो करना होगा। जिसमें पूरी 4 रकात नमाज़ का तरीका बताया हुआ हैं। (ज़ोहर के लिए ज़ोहर की क़ज़ा नमाज़ की नियत करें और असर के लिए असर की क़ज़ा नमाज़ की नीयत करें)

Magrib ki Qaza Namaz ka Tarika

मगरिब में 3 रकात फर्ज़ नमाज़ होती हैं। लिहाज़ा आपको पहली 2 रकात नमाज़ फज्र की नमाज़ की तरह पढ़ना है फिर तीसरी रकात में दूसरे सजदे के बाद बैठ जाना है और 52 स्टेप से आखरी स्टेप को फॉलो करते हुए नमाज़ पूरी करनी है।

Isha ki Farz Qaza and vitr Qaza ka Tarika

ईशा की क़ज़ा नमाज़ ज़ोहर और असर की तरह पढ़ी जाएगी। लेकिन वित्र की नमाज़ का तरीका बिल्कुल अलग है ईशा की वित्र की रकात 3 होती है। जिसमें पहली दो रकात फज्र की तरह पढ़नी होती है। लेकिन तीसरी रकात में सूरज फातिहा के बाद फिर कोई एक सूरह पढ़ी जाती है इसके बाद अल्लाहु अकबर तकबीर कहकर हाथो को कानो तक उठाकर दोबारा बंधा जाता है और फिर दुआ ए क़ुनूत पढ़ी जाती है। इसके बाद रुकी में जाते हुए 45 स्टेप से आखरी स्टेप तक फॉलो करें!

जरूरी बातें: जिस पर बहुत ज्यादा क़ज़ा नमाज़े जिम्मे हो वोह रुकु में 3 बार की जगह सिर्फ एक बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम और सजदे में 3 बार की जगह एक बार सुब्हान रब्बियल अला कह सकता हैं। हलांकी की रुकु और सजदा बिलकुल आराम से करें ताकि रुकु और सजदे की अदायेगी हो जाए।

इसी तरह 4 रकात वाली क़ज़ा नमाज़ में दूसरी और तीसरी रकात में सूरह फातिहा की जगह 3 बार “सुब्हान अल्लाह” कहे कर रुकु किया जा सकता हैं। हालांकि वित्र की नमाज़ में तीनों ही रकात में सूरह फातिहा पढ़ना जरूरी हैं। वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत की जगह 3 बार “रब्बिग्फर्ली” पढ़ सकते हैं।

इसी तरह चौथी रकात में अत्तहिय्यात मुकम्मल पढ़ने के बाद दुरूफ शरीफ और दुआ ए मशूरा की जगह “अल्लाहुमा सल्लीअला मुहम्मदिव अला” पढ़कर सलाम फेर लें।

आखरी अल्फाज़

क़ज़ा नमाज़ एक अहम इबादत है, जिसे सही तरीके से अदा करना हर मुसलमान के लिए जरूरी है। यह उन नमाज़ों की भरपाई का तरीका है जो किसी मजबूरी या भूलवश रह गई हों। क़ज़ा नमाज़ को सही नियत के साथ अदा करके हम अल्लाह की रज़ा और माफ़ी की उम्मीद कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में नियत का साफ होना और नमाज़ के सभी अरकान का सही से पालन करना ज़रूरी है। क़ज़ा ए उमरी के जरिए, मुसलमान अपनी जिंदगी में छूटी हुई नमाज़ों का हिसाब रखते हुए उन्हें अदा कर सकते हैं।

FAQs:

क़ज़ा नमाज़ क्या है और इसकी जरूरत क्यों होती है?

क़ज़ा नमाज़ वह नमाज़ होती है जो तय वक्त पर नहीं पढ़ी जा सकी और बाद में अदा की जाती है। इसे अदा करने से अल्लाह की माफ़ी और रज़ा की उम्मीद होती है।

क़ज़ा ए उमरी का क्या मतलब है?

क़ज़ा ए उमरी उन तमाम फर्ज़ और वाजिब नमाज़ों की क़ज़ा करना है जो किसी इंसान की जिंदगी में रह गई हों।

क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करें?

नियत करते समय दिल में यह तय करें कि यह नमाज़ छूटी हुई फर्ज़ या वाजिब नमाज़ों की क़ज़ा है। नियत साफ और दिल से होनी चाहिए। नियत का मुकम्मल तरीका पोस्ट में बताया गया है।

क़ज़ा नमाज़ कब पढ़ी जा सकती है?

क़ज़ा नमाज़ मकरूह वक्त के अलावा किसी भी वक्त पढ़ी जा सकती है। इसे अकेले में पढ़ना बेहतर होता है।

क्या क़ज़ा नमाज़ नफ्ल नमाज़ से ज्यादा अहम है?

हाँ, क़ज़ा नमाज़ नफ्ल नमाज़ से ज्यादा अहम है क्योंकि क़ज़ा नमाज़ जब तक पूरी न हो जाएं, नफ्ल नमाज़ कबूल नहीं होती।

क़ज़ा नमाज़ का तरीका क्या है?

क़ज़ा नमाज़ ठीक उसी तरह पढ़ी जाती हैं जिस तरह आम फर्ज़ या वाजिब नमाज़ पढ़ी जाती हैं, लेकिन नियत का साफ होना जरूरी है। ऊपर दिए गए स्टेप्स का पालन करके इसे अदा किया जा सकता है।

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