Farz namaz ke bad ki dua: नमाज़ के बाद के प्यारे अज़कार और दुआएं

farz namaz ke bad ki dua in hindi

अस्सलामु अलैकुम प्यारे बहनों और भाइयों! नमाज़ हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्सा है। ये अल्लाह से जुड़ने का, उससे बात करने का सबसे खूबसूरत ज़रिया है। जब हम फर्ज़ नमाज़ अदा कर लेते हैं, तो उसके बाद कुछ बहुत ही खास दुआएं और अज़कार होते हैं, जिन्हें पढ़ना बहुत फायदेमंद होता है। इन्हें पढ़ने से हमारी नमाज़ और भी मुकम्मल हो जाती है और अल्लाह की रहमतें हम पर बरसती हैं।

आज हम बात करेंगे उन्हीं ‘Farz namaz ke bad ki dua in hindi’ और ‘Farz namaz ke bad ki tasbeeh’ के बारे में, जो हमें हर फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़नी चाहिए। ये वो अज़कार हैं जो हमारे प्यारे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमें सिखाए हैं।

Farz namaz ke bad kaun si dua padhe?

वैसे तो नमाज़ के बाद आप कोई भी जायज़ दुआ मांग सकते हैं, लेकिन कुछ खास अज़कार और दुआएं हैं जिनका ज़िक्र हदीसों में मिलता है और जिन्हें पढ़ना बहुत सवाब का काम है। आइए उन्हें देखते हैं:

1. इस्तगफ़ार (Istighfar):

नमाज़ पूरी करने के फौरन बाद सबसे पहले तीन बार ‘अस्तग़फ़िरुल्लाह’ पढ़ना चाहिए।

अरबी में:

أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ

हिंदी में:

अस्तग़फ़िरुल्लाह

मतलब (हिंदी में): मैं अल्लाह से बख़्शिश मांगता हूँ।

ये इसलिए पढ़ते हैं ताकि अगर नमाज़ में हमसे कोई गलती या कमी हुई हो, तो अल्लाह उसे माफ कर दे।

2. दुआ-ए-सलाम (Dua-e-Salam):

इसके बाद ये दुआ पढ़नी चाहिए:

अरबी में:

اللَّهُمَّ أَنْتَ السَّلاَمُ وَمِنْكَ السَّلاَمُ تَبَارَكْتَ يَا ذَا الْجَلاَلِ وَالإِكْرَامِ

हिंदी में:

अल्लाहुम्मा अंतस सलामु व मिंकस्स सलामु तबा-रक्ता या ज़ल जलालि वल इकराम।

मतलब (हिंदी में): ए अल्लाह! तू ही सलामती है और तेरी ही तरफ से सलामती है। तू बहुत बरकत वाला है, ए अज़मत और बुज़ुर्गी वाले।

ये दुआ अल्लाह की अज़मत और उसकी सलामती का इकरार है और इससे दिल को सुकून मिलता है।

3. तस्बीहात-ए-फातिमा (Tasbihat-e-Fatima):

ये बहुत ही मशहूर और सवाब वाली तस्बीह है, जिसका ज़िक्र हदीसों में मिलता है। ये तस्बीह इस तरह है:

  • सुब्हानल्लाह (Subhanallah): 33 बार
    • अरबी में: سُبْحَانَ اللَّهِ
    • मतलब (हिंदी में): अल्लाह पाक है।
  • अल्हमदुलिल्लाह (Alhamdulillah): 33 बार
    • अरबी में: الْحَمْدُ لِلَّهِ
    • मतलब (हिंदी में): तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं।
  • अल्लाहु अकबर (Allahu Akbar): 34 बार
    • अरबी में: اللَّهُ أَكْبَرُ
    • मतलब (हिंदी में): अल्लाह सबसे बड़ा है।

कुल मिलाकर ये 100 बार हो जाते हैं। इस तस्बीह को पढ़ने के बहुत सवाब हैं और ये मुश्किलों को आसान करती है।

4. ला इलाहा इल्लल्लाह (La ilaha illallah):

तस्बीहात के बाद ये दुआ पढ़नी चाहिए:

अरबी में:

لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ‏

हिंदी में:

ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरीका लहू लहुल मुल्क व लहुल हम्दु व हुवा अला कुल्ली शैइन क़दीर।

मतलब (हिंदी में): अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक (हिस्सेदार) नहीं। उसी की बादशाहत है और उसी के लिए तमाम तारीफ़ें हैं और वह हर चीज़ पर कुदरत रखने वाला है।

ये दुआ अल्लाह की तौहीद का इकरार है और गुनाहों को माफ कराने का ज़रिया है।

5. आयतुल कुर्सी (Ayatul Kursi):

फर्ज नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ना बहुत फज़ीलत वाला है। हदीस में आता है कि जो शख्स हर फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ता है, तो जन्नत में दाखिल होने से सिर्फ मौत ही उसे रोक सकती है।

अरबी में:

اَللّٰهُ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَۚ اَلْـحَيُّ الْقَيُّوْمُ ەۚ لَا تَاْخُذُهٗ سِـنَةٌ وَّلَا نَوْمٌؕ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِؕ مَنْ ذَا الَّذِيْ يَشْفَعُ عِنْدَهٗۤ اِلَّا بِاِذْنِهٖؕ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ اَيْدِيْهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْۚ وَلَا يُحِيْطُوْنَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهٖۤ اِلَّا بِمَا شَآءَۚ وَسِعَ كُـرْسِـيُّهُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَۚ وَلَا يَـئُوْدُهٗ حِفْظُهُمَاۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيْمُ

मतलब (हिंदी में): अल्लाह, उसके सिवा कोई माबूद नहीं, वह जिंदा है (और) सबका थाम सँभालने वाला है। उसे ऊँघ आती है और न नींद। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। कौन है जो उसकी इजाज़त के बगैर उसकी बारगाह में सिफारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनसे पोशीदा है। और वह उसकी जानकारी की कोई चीज़ अपने इल्म में नहीं ला सकते मगर जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी ने आसमान-ओ-ज़मीन को घेरा हुआ है और उसे इन दोनों की हिफाज़त थकाती नहीं। और वही बुलंद, अज़मत वाला है।

ये आयत शैतान के शर से हिफाज़त के लिए बहुत मुसर्रिफ है।

6. आखरी तीन कुल:

जैसे हमने पिछले आर्टिकल में ‘4 Qul in hindi‘ के बारे में बात की थी, फर्ज़ नमाज़ के बाद आखिरी तीन कुल (सूरह अल-इखलास, सूरह अल-फलक और सूरह अल-नास) पढ़ना भी सुन्नत है। खासकर फज्र और मगरिब के बाद इनका पढ़ना बहुत अहम है।

7. दुआ मांगना:

अब ये वो वक़्त है जब आप दिल खोलकर अल्लाह से अपनी ज़रूरतें मांग सकते हैं। अल्लाह से दुआ कीजिए, अपनी और अपने घर वालों की हिफाज़त मांगिए, गुनाहों की माफी मांगिए, रिज़्क़ में बरकत मांगिए, सेहत मांगिए और जो भी जायज़ मुराद हो, अल्लाह के सामने रखिए।

नमाज़ के बाद का वक़्त दुआ की कुबूलियत का खास वक़्त होता है।

Farz nama ke bad ka Zikr aur uski Ahmiyat

नमाज़ के बाद ‘Farz namaz ke bad ka Zikr‘ और दुआएं हमारी इबादत का एक अहम हिस्सा हैं। इनके कई फायदे हैं:

  • गुनाहों की माफी: इस्तग़फ़ार और दूसरी दुआएं हमारे गुनाहों को माफ कराने का ज़रिया बनती हैं।
  • दिल को सुकून: अल्लाह का ज़िक्र करने से दिल को सुकून मिलता है और इत्मीनान आता है।
  • हिफाज़त: आयतुल कुर्सी और आखिरी तीन कुल हमें हर तरह के शर और शैतान के वसवसों से बचाते हैं।
  • अल्लाह की क़ुरबत: इन अज़कार और दुआओं से हम अल्लाह के और करीब होते हैं।
  • नमाज़ की कमी को पूरा करना: अगर नमाज़ में कोई कमी रह गई हो, तो ये अज़कार उसे पूरा करने में मदद करते हैं।

Hadith on Farz namaz ke bad ki dua:

कई मुस्तनद हदीसों में फर्ज़ नमाज़ के बाद के अज़कार और दुआओं की फज़ीलत बयान की गई है।

  • अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “जो शख्स हर नमाज़ के बाद 33 बार सुब्हानल्लाह, 33 बार अल्हमदुलिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर कहे, तो ये कुल 100 होंगे, उसके गुनाह माफ कर दिए जाएंगे, चाहे वो समंदर की झाग के बराबर ही क्‍यों न हों।” (सहीह मुस्लिम:)
  • अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “जो शख्स हर फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ेगा, उसके और जन्नत के दरमियान मौत के सिवा कोई चीज़ हाइल नहीं होगी।” (सुनन नसई:)

इन हदीसों से साफ ज़ाहिर होता है कि ‘Farz namaz ke bad padhi jane wali dua’ और अज़कार कितनी फज़ीलत वाले हैं।

Conclusion:

तो दोस्तों, फर्ज़ नमाज़ अदा करने के बाद फौरन खड़े होकर भागना नहीं चाहिए, बल्कि कुछ देर बैठकर अल्लाह का ज़िक्र करना चाहिए और दुआ मांगनी चाहिए। ये छोटे-छोटे अज़कार हमारी ज़िंदगी में बहुत बड़ी बरकत ला सकते हैं।

‘Farz namaz ke bad ke azkar’ और दुआएं हमें अल्लाह से जोड़े रखती हैं, हमारे गुनाहों को माफ कराती हैं और हमारी हिफाज़त करती हैं। इन्हें अपनी आदत बनाएं और इनकी फज़ीलत से फायदा उठाएं।

अल्लाह ताला हमें हर फर्ज़ नमाज़ के बाद इन प्यारे अज़कार और दुआओं को पढ़ने की तौफीक अता फरमाए और हमारी दुआओं को कुबूल करे। आमीन।

अगर आपके ज़हन में ‘Farz namaz ki dua’ या ‘Farz nama ke bad ka Zikr’ से जुड़ा कोई सवाल हो, तो बेझिझक पूछें। हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपकी रहनुमाई कर सकें।

याद रखें, दुआ दिल से और पूरे भरोसे के साथ मांगनी चाहिए। अल्लाह हमारी नीयतें देखता है।

शुक्रिया! अस्सलामु अलैकुम।

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