Namaz ke bad ki Dua: दोस्तो नमाज़ हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्सा है। ये अल्लाह से सीधा बात करने का सबसे प्यारा तरीका है। जब हम नमाज़ पूरी कर लेते हैं, तो उसके बाद का वक़्त नमाज़ के बाद की दुआ मांगने के लिए बहुत ही ख़ास और क़ुबूलियत वाला होता है।

ये वो पल है जब हम अल्लाह के सामने झुकते हैं, अपनी ज़रूरतें बताते हैं और उससे रहमत की उम्मीद करते हैं। अगर आप Namaz ke baad ki dua in Hindi या Dua after Salah ढूंढ रहे हैं, तो ये लेख आपको कुछ आसान और बरकत वाली दुआएं बताएगा जो सुन्नत से साबित हैं।
ये आपको अल्लाह के और करीब ले जाएँगी। हम आपको हर दुआ का सही रेफ़रेंस देंगे ताकि आपको पूरा यकीन हो कि आप सही तरीका अपना रहे हैं। ये लेख आपको Farz Namaz ke baad ki dua और Every Namaz ke baad padhne wali dua के बारे में पूरी जानकारी देगा
Namaz ke bad ki Dua की अहमियत
नमाज़ के बाद दुआ करना हमारे प्यारे नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की एक बेहतरीन और खूबसूरत सुन्नत है। उन्होंने हमें सिखाया कि जब हम अल्लाह की इबादत से फ़ारिग़ हो जाएं, तो उसके बाद दुआ करके अपनी ख्वाहिशें मांगें।
ये वक़्त अल्लाह की तरफ से दी गई एक ऐसी नेमत है जब हमारी दुआओं के कबूल होने की उम्मीद सबसे ज़्यादा होती है। ये इसलिए भी ख़ास है क्योंकि हम अभी-अभी अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर होकर उसके फ़राइज़ पूरे कर चुके होते हैं। इसी वजह से ये Time for acceptance of Dua after Namaz माना जाता है।
एक हदीस में है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा गया: “कौन सी दुआ ज़्यादा सुनी जाती है?” आपने फ़रमाया: “रात के आख़िरी हिस्से में और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद की दुआ।” (जामी अत-तिर्मिज़ी, हदीस: 3499)
ये हदीस साफ़ बताती है कि नमाज़ के बाद दुआ की क्या अज़मत है, और ये हमें अल्लाह से अपनी हर हाजत मांगने की तरग़ीब देती है।
सबसे पहले इस्तिग़फ़ार करना

नमाज़ के बाद सबसे पहले तीन बार “अस्तग़फ़िरुल्लाह” कहना चाहिए। ये हमारी नमाज़ में हुई किसी भी कमी या ख़ता की माफ़ी के लिए है।
इसके बाद आप ये दुआ पढ़ सकते हैं:
हिंदी दुआ: अल्लाहुम्मा अंतस्सलामु व मिन्कस सलामु तबारकता या ज़ल जलालिल वल इक्राम।
आसान तर्जुमा: ऐ अल्लाह! तू ही सलामती वाला है और तेरी ही तरफ से सलामती है। तू बहुत बरकत वाला है ऐ अज़मत और बुज़ुर्गी वाले।
(सही मुस्लिम, हदीस: 591) ये दुआ Dua after Fardh Namaz में सबसे पहले पढ़ी जाती है और इससे हमारे दिल को सुकून मिलता है।
आयतल कुर्सी: हिफाज़त और बरकत के लिए
आयतल कुर्सी क़ुरान की सबसे अज़मत वाली आयत मानी जाती है। इसे नमाज़ के बाद एक बार पढ़ना चाहिए। इसके बहुत से फ़ायदे हैं जिनमें शैतान से हिफ़ाज़त और जन्नत में दाखिल होने की बशारत शामिल है। जो इसे हर नमाज़ के बाद पढ़ता है, उसके और जन्नत के बीच सिर्फ मौत का पर्दा होता है। ये हमारे ईमान को मज़बूत करती है और अल्लाह की कुदरत का एहसास दिलाती है।
अयातुल कुर्सी: अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल-हय्युल-क़य्यूम; ला ता’खुज़ुहू सिनतुंव वला नौम; लहु मा फिस्समावाति व मा फ़िल-अर्ज़; मन-ज़ल्लज़ी यशफ़ऊ इंदहू इल्ला बि-इज़निह; यअलमु मा बैना अय्दीहिम व मा ख़लफहुम; व ला युहीतूना बि-शैइम-मिन ‘इल्मिही इल्ला बिमा शाअ; वसिअ कुर्सीयुहुस-समावाति वल-अर्ज़; व ला यऊदुहू हिफ्ज़ुहुमा; व हुवल ‘अलिय्युल-अज़ीम।
आसान तर्जुमा: अल्लाह! उसके सिवा कोई माबूद नहीं जो ज़िंदा और सबका निगहबान है। उसे न ऊंघ आती है और न नींद। आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है जो उसकी इजाज़त के बिना सिफारिश कर सके? वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है। और वे उसके इल्म में से कुछ भी नहीं जान सकते, सिवाए उसके जो वह खुद चाहे। उसकी कुर्सी आसमानों और ज़मीन पर फैली हुई है। और उसे इन दोनों की हिफाज़त थकाती नहीं। और वही सबसे बुलंद, सबसे महान है।
(सूरह अल-बक़रह, आयत 255)
तस्बीह फ़ातिमी: गुनाहों की माफ़ी और अज़ीम अज्र
नमाज़ के बाद तस्बीह फ़ातिमी पढ़ना बहुत अफ़ज़ल है। इसमें 33 बार सुब्हानल्लाह, 33 बार अल्हम्दुलिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर पढ़ा जाता है। ये सुन्नत तरीका है जिसे हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) को नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सिखाया था। ये तस्बीह हमारे गुनाहों को माफ़ करवाने का बहुत बड़ा ज़रिया है, और हमें अल्लाह के करीब लाती है।
33 बार: सुब्हानल्लाह (अल्लाह हर ऐब से पाक है)
33 बार: अल्हम्दुलिल्लाह (सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं)
34 बार: अल्लाहु अकबर (अल्लाह सबसे बड़ा है)
(सही बुखारी, हदीस: 5362; सही मुस्लिम, हदीस: 2728)
जो शख्स हर नमाज़ के बाद ये तस्बीह पढ़ता है, उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, अगरचे वो समंदर के झाग के बराबर ही क्यों न हों। ये Most powerful Wazifa after Namaz है।
तीन क़ुल: हर तरह की बुराई से हिफ़ाज़त
क़ुरान की आखिरी तीन सूरतें – सूरह इख़्लास, सूरह फ़लक और सूरह नास – को ‘तीन क़ुल’ कहा जाता है। इन्हें हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद एक-एक बार पढ़ना चाहिए। ये हमें हर तरह की बुराई, जादू और शैतानी वस्वसों से बचाते हैं। ये Short duas after Namaz हमारे लिए एक ढाल का काम करती हैं।
- सूरह इख़्लास
- सूरह फ़लक
- सूरह नास
(अबू दाऊद, हदीस: 1523)
ये ख़ास तौर पर सुबह और शाम की नमाज़ों (फ़जर और मगरिब) के बाद तीन-तीन बार पढ़ने का भी ज़िक्र मिलता है, लेकिन हर नमाज़ के बाद एक-एक बार पढ़ना भी अफ़ज़ल है।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की कुछ और दुआएं
हमारे प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद कुछ और दुआएं भी पढ़ते थे, जो हमें अल्लाह से अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में मदद मांगने की सीख देती हैं।
a) अल्लाह से ज़िक्र, शुक्र और अच्छी इबादत के लिए:
हिंदी दुआ: अल्लाहुम्मा अइन्नी अला ज़िकरिक व शुक्रिक व हुस्नि इबादतिक।
आसान तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मेरी मदद फ़रमा कि मैं तेरा ज़िक्र करूँ, तेरा शुक्र अदा करूँ और अच्छी तरह तेरी इबादत करूँ।
(सुनन अबी दाऊद, हदीस: 1522)
ये Best Dua after Namaz मानी जाती है क्योंकि इसमें दीन की तीन बुनियादी चीज़ों की मदद मांगी गई है।
b) जन्नत और जहन्नम से पनाह:
हिंदी दुआ: अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुकल जन्नाता व अऊज़ुबिका मिनन्नार।
आसान तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तुझसे जन्नत का सवाल करता हूँ और जहन्नम से तेरी पनाह चाहता हूँ।
(सुनन इब्ने माजा, हदीस: 4340)
ये दुआ हमें दुनिया में जन्नत पाने की ख्वाहिश और जहन्नम से बचने की फिक्र पैदा करती है। ये Dua for Jannah after Namaz का अहम हिस्सा है।
नमाज़ के बाद दुआ कैसे करें ताकि कबूल हो?
सिर्फ दुआ के अल्फाज़ पढ़ना ही काफी नहीं है, बल्कि दुआ करने का सही तरीका और दिल का हाल भी मायने रखता है। अल्लाह से दिल का सच्चा रिश्ता बनाने के लिए इन बातों पर गौर करें।
पूरा यकीन रखें: इस बात पर पूरा यकीन हो कि अल्लाह आपकी दुआ सुनता है और उसे कबूल करने की कुदरत रखता है। ये How to get Dua accepted का पहला और सबसे अहम कदम है।
- खुशू और ख़ुज़ू: दुआ करते वक़्त दिल में आजिज़ी और इनक सारी पैदा करें। अल्लाह के सामने अपनी बेबसी ज़ाहिर करें।
- हाथ उठा कर: दुआ के लिए हाथ उठाना सुन्नत है और दुआ के आदाब में से है।
- अल्लाह की तारीफ से शुरू करें: पहले अल्लाह की तारीफ करें, फिर दरूद शरीफ पढ़ें और फिर अपनी हाजत पेश करें। आखिर में फिर दरूद शरीफ और अल्लाह की तारीफ करें। ये Effective Dua after Namaz का एक मुकम्मल तरीका है।
- माफ़ी मांगें: दुआ से पहले अपने गुनाहों की माफ़ी मांगना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि गुनाह दुआ की कबूलियत में रुकावट बन सकते हैं।
- बार-बार मांगें: एक बार दुआ करके मायूस न हों। बार-बार अल्लाह से मांगते रहें, क्योंकि अल्लाह अपने बंदे की दुआ को पसंद करता है। ये Best way to make Dua में सब्र की ताकीद है।
आखिर में
नमाज़ के बाद की ये दुआएं और अज़कार हमें अल्लाह के और करीब लाते हैं। ये हमें अल्लाह का शुक्र अदा करने, उसकी मदद मांगने और अपने गुनाहों की माफ़ी चाहने का मौका देते हैं। इन दुआओं को अपनी आदत बना लें और देखें कि कैसे आपकी ज़िंदगी में अल्लाह की बरकतें आती हैं। ये हमें मानसिक सुकून भी देती हैं। याद रखें, अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को कभी रद्द नहीं करता और हमेशा बेहतरीन देता है। Sunnah duas after Namaz आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बननी चाहिए।
अल्लाह हमें हमेशा अपनी इबादत और ज़िक्र करने की तौफ़ीक अता फ़रमाए। आमीन।