दुरूद-ए-ताज: फ़ज़ीलत, पढ़ने का तरीक़ा और अहमियत (Durood-e-Taj: Fazilat, Padhne Ka Tareeqa Aur Ahmiyat)

इस्लाम में, प्यारे नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर दुरूद भेजना एक बहुत ही अज़ीम इबादत है. अल्लाह तआला कुरान में फ़रमाता है: “बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर दुरूद भेजते हैं. ऐ ईमान वालो! तुम भी उन पर दुरूद और ख़ूब सलाम भेजो.” (सूरह अल-अहज़ाब, आयत 56)
दुरूद-ए-ताज एक ऐसा ही मशहूर दुरूद है, जिसे बहुत से मुसलमान अपनी ज़िंदगी में पढ़ते हैं. इसकी ख़ासियतें, फ़ायदे और पढ़ने का तरीक़ा जानना ज़रूरी है.
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दुरूद-ए-ताज क्या है? (Durood-e-Taj Kya Hai?)
दुरूद-ए-ताज (Durood-e-Taj) नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शान में पढ़ा जाने वाला एक दुरूद है, जिसमें आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सिफ़ात और मर्तबे का ज़िक्र किया गया है. इस दुरूद को “ताज” (Crown) इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मख़लूक़ात के सरदार और ताजदार के तौर पर बयान किया गया है.
यह दुरूद कुरान या सहीह हदीस में सीधे तौर पर नहीं मिलता, बल्कि बुज़ुर्गों और औलिया-ए-किराम (रहमहुमुल्लाह) ने इसे अपने इल्म और मुहब्बत से तैयार किया है. इसलिए, इसका मर्तबा उन दुरूद शरीफ़ के बराबर नहीं है जो सीधे हदीस से साबित हैं (जैसे दुरूद-ए-इब्राहिमी). फिर भी, इसे पढ़ना जायज़ माना जाता है अगर इसकी फ़ज़ीलतें क़ुरान-ओ-सुन्नत के ख़िलाफ़ न हों और शिर्क से पाक हों.
दुरूद-ए-ताज का मुकम्मल अरबी, हिंदी तर्जुमा और ट्रांसलिटरेशन (Durood-e-Taj Arabic, Hindi Translation & Transliteration)
दुरूद-ए-ताज एक लम्बा दुरूद है, जिसमें अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सिफ़ात को बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़ में बयान किया गया है.
अरबी (Arabic):
اللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰی سَيِّدِنَا وَمَوۡلَانَا مُحَمَّدٍ صَاحِبِ التَّاجِ وَالۡمِعۡرَاجِ وَالۡبُرَاقِ وَالۡعَلَمِ ۰ دَافِعِ الۡبَلَاءِ وَالۡوَبَاءِ وَالۡقَحۡطِ وَالۡمَرَضِ وَالۡاَلَمِ ۰ اِسۡمُہٗ مَکۡتُوۡبٌ مَّرۡفُوۡعٌ مَّشۡفُوۡعٌ مَّنۡقُوۡشٌ فِی اللَّوۡحِ وَالۡقَلَمِ ۰ سَيِّدِ الۡعَرَبِ وَالۡعَجَمِ ۰ جِسۡمُہٗ مُقَدَّسٌ مُّعَطَّرٌ مُّطَهَّرٌ مُّنَوَّرٌ فِی الۡبَيۡتِ وَالۡحَرَمِ ۰ شَمۡسِ الضُّحٰی بَدۡرِ الدُّجٰی صَدۡرِ الۡعُلٰی نُوۡرِ الۡهُدٰی کَهۡفِ الۡوَرٰی مِصۡبَاحِ الظُّلَمِ ۰ جَمِيۡلِ الشِّيَمِ شَفِيۡعِ الۡاُمَمِ ۰ صَاحِبِ الۡجُوۡدِ وَالۡکَرَمِ ۰ وَاللّٰهُ عَاصِمُہٗ ۰ وَجِبۡرِيۡلُ خَادِمُہٗ ۰ وَالۡبُرَاقُ مَرۡکَبُہٗ ۰ وَالۡمِعۡرَاجُ سَفَرُہٗ ۰ وَسِدۡرَةُ الۡمُنۡتَهٰی مَقَامُہٗ ۰ وَقَابَ قَوۡسَيۡنِ مَطۡلُوۡبُہٗ ۰ وَالۡمَطۡلُوۡبُ مَقۡصُوۡدُہٗ ۰ وَالۡمَقۡصُوۡدُ مَوۡجُوۡدُہٗ ۰ سَيِّدِ الۡمُرۡسَلِيۡنَ ۰ خَاتِمِ النَّبِيِّيۡنَ ۰ شَفِيۡعِ الۡمُذۡنِبِيۡنَ ۰ اَنِيۡسِ الۡغَرِيۡبِيۡنَ ۰ رَحۡمَةٍ لِّلۡعَالَمِيۡنَ ۰ رَاحَةِ الۡعَاشِقِيۡنَ ۰ مُرَادِ الۡمُشۡتَاقِيۡنَ ۰ شَمۡسِ الۡعَارِفِيۡنَ ۰ سِرَاجِ السَّالِکِيۡنَ ۰ مِصۡبَاحِ الۡمُقَرَّبِيۡنَ ۰ مُحِبِّ الۡفُقَرَاءِ وَالۡمَسَاکِيۡنَ ۰ سَيِّدِ الثَّقَلَيۡنِ ۰ نَبِيِّ الۡحَرَمَيۡنِ ۰ اِمَامِ الۡقِبۡلَتَيۡنِ ۰ وَسِيۡلَتِنَا فِی الدَّارَيۡنِ ۰ صَاحِبِ قَابَ قَوۡسَيۡنِ ۰ مَحۡبُوۡبِ رَبِّ الۡمَشۡرِقَيۡنِ وَالۡمَغۡرِبَيۡنِ ۰ جَدِّ الۡحَسَنِ وَالۡحُسَيۡنِ ۰ مَوۡلَانَا وَمَوۡلَی الثَّقَلَيۡنِ ۰ اَبِی الۡقَاسِمِ مُحَمَّدِ بۡنِ عَبۡدِ اللّٰهِ ۰ نُوۡرٍ مِّنۡ نُوۡرِ اللّٰهِ ۰ يَا اَيُّهَا الۡمُشۡتَاقُوۡنَ بِنُوۡرِ جَمَالِہٖ ۰ صَلُّوۡا عَلَيۡهِ وَاٰلِهٖ وَاَصۡحَابِهٖ وَسَلِّمُوۡا تَسۡلِيۡمًا ۰
Durood-e-Taj in Hindi:

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अल्लाहुम्मा सल्ली ‘अला सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिन साहिबित-ताजि वल मि’राज वल बुर्राक़ि वल ‘अलम। दाफ़ि’इल बला-इ वल वबा-इ वल क़हति वल मरज़ि वल अलम। जिस्मूहू मुक़द्दसुं मुत्तहहरुं मुनव्वरुं फ़िल क़वने। शम्सुद्दुहा बदरुद-दुजा नूरुल हुदा मिस्बाहुज़ ज़ुल्म। अबिल क़ासिमि सय्यिदिनल ‘अरबि वल ‘अजम। नबिय्यिल हरमैनि महबूबि रब्बिल मशरिक़ैनि वल मग़रिबैनि जद्दिल हसनि वल हुसैनि मौलाना व मौलस सक़लैन। अबिल क़ासिमि मुहम्मदिनिब्नि अब्दुल्लाहि नूरिम मिन नूरिल्लाह। या अय्युहल मुश्ताक़ूना बिनूरि जमालहि सल्लू ‘अलैहि व आलहि व अस्हाबिहि व सल्लिम तस्लीमन कसीरा।
हिंदी तर्जुमा (Hindi Translation):
ऐ अल्लाह! हमारे आक़ा और मौला मुहम्मद पर दुरूद भेज, जो ताज (सरदारी) वाले, मेराज वाले, बुराक़ (आसमानी सवारी) वाले और झंडे (इस्लाम के परचम) वाले हैं. जो बलाशों, वबा, कहत (सूखा), बीमारी और तकलीफ़ों को दूर करने वाले हैं. जिनका नाम लौह-ओ-क़लम में लिखा हुआ, बुलंद किया हुआ, शफ़ाअत के लिए साथ जोड़ा गया और नक़्श है.
जो अरब और अजम (गैर-अरब) के सरदार हैं. जिनका जिस्म पाक, ख़ुशबूदार, पाकीज़ा और बैतुल हराम (काबा शरीफ़) में नूरानी है. जो सुबह की धूप, रात की चाँदनी, बुलंदी के सरताज, हिदायत के नूर, मख़लूक़ के पनाहगाह और अँधेरों के चिराग़ हैं. जो बेहतरीन सिफ़ात वाले और उम्मतों की शफ़ाअत करने वाले हैं. जो सख़ावत और करम वाले हैं.
और अल्लाह उनका निगहबान है, और जिब्रील (अलैहिस्सलाम) उनके ख़ादिम हैं, और बुराक़ उनकी सवारी है, और मेराज उनका सफ़र है, और सिद्रतुल मुंतहा उनका मक़ाम है, और क़ाबा क़ौसैन उनका मक़सूद (मंज़िल) है, और मक़सूद ही उनका मक़्सद है, और मक़सद ही उनका वजूद है.
जो रसूलों के सरदार हैं, नबियों के ख़ातमा (अंतिम नबी) हैं, गुनाहगारों की शफ़ाअत करने वाले हैं, ग़रीबों के साथी हैं, तमाम जहानों के लिए रहमत हैं. आशिक़ों के लिए राहत हैं, मुश्ताक़ों (चाहने वालों) की मुराद हैं, आरिफ़ों (पहचानने वालों) के सूरज हैं, सालिकों (रास्ता चलने वालों) के चिराग़ हैं, अल्लाह से क़रीब वालों के लिए रौशनी हैं. फ़क़ीरों और मिसकीनों (मोहताजों) से मुहब्बत करने वाले हैं. दोनों जहानों (इंसानों और जिन्नों) के सरदार हैं, दोनों हरामों (मक्का और मदीना) के नबी हैं, दोनों क़िबलों (बैतुल मुक़द्दस और काबा) के इमाम हैं, दोनों जहानों में हमारे लिए वसीला (ज़र्रिया) हैं. क़ाबा क़ौसैन वाले हैं. मशरिक़ और मग़रिब (पूर्व और पश्चिम) के रब के महबूब हैं. हज़रत हसन और हज़रत हुसैन के नाना हैं. हमारे मौला और दोनों जहानों के मौला हैं. अबू अल-क़ासिम मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह हैं. जो अल्लाह के नूर में से नूर हैं.
ऐ मुहब्बत करने वालो! उनकी ख़ूबसूरत नूरानी ज़ात से मुहब्बत करने वालो! उन पर, उनकी आल (घराने) पर और उनके असहाब (साथियों) पर ख़ूब दुरूद-ओ-सलाम भेजो.

Durood E Taj in English:
“Allahumma Salli Ala Sayyidina wa Mawlana Muhammadin Sahibit-Taj Wal-Mi
raji Wal-Buraqi Wal-Alam. Dafi
il Bala’i Wal-Waba’i Wal-Qahti Wal-Maradi Wal-Alam. Ismuhu Maktubun Marfuun Mashfu
un Manqushun Fil-Lawhi Wal-Qalam. Sayyidil Arabi Wal-
Ajam. Jismuhu Muqaddasun Muattarun Mutahharun Munawwarun Fil-Bayti Wal-Haram. Shamsid Duha Badridd Duja Sadril
Ula Nuril Huda Kahfil Wara Misbahiz Zulam. Jamilish Shiyami Shafiil Umam. Sahibill Judi Wal-Karam. Wallahu
Asimuhu. Wa Jibrilu Khadimuhu. Wal-Buraqu Markabuhu. Wal-Miraju Safaruhu. Wa Sidratul Muntaha Maqamuhu. Wa Qaba Qawsayni Matlubuhu. Wal-Matlubu Maqsuduhu Wal-Maqsudu Mawjuduh. Sayyidil Mursalin. Khatimin Nabiyyeena. Shafi
il Mudhnibin. Anisil Gharibeena. Rahmatil LilAlameen. Rahatil
Ashiqeen. Muradil Mushtaqeen. Shamsil Arifeen. Sirajis Salikeen. Misbahil Muqarrabeen. Muhibbil Fuqara'ay Wal-Masakeen. Sayyidith Thaqalayn. Nabiyyil Haramayn. Imamil Qiblatayn. Wasilatina Fid Darayn. Sahibi Qaba Qawsayni. Mahbubi Rabbil Mashriqayni Wal-Maghribayn. Jaddil Hasani Wal-Husayn. Mawlana wa Mawlath Thaqalayn. Abil Qasimi Muhammadibni
Abdillahi. Nurinm Min Nurillahi. Ya Ayyuhal Mushtaquna Bi Nuri Jamalihi. Sallu `Alayhi Wa Alihi Wa Ashabihi Wa Sallimu Taslima.”
दुरूद-ए-ताज के फ़ायदे और फ़ज़ीलतें (Durood-e-Taj Ke Fayde Aur Fazilatein)
दुरूद-ए-ताज के कुछ फ़ायदे और फ़ज़ीलतें, जो अहल-ए-तसव्वुफ़ और कुछ आलिमे-दीन ने बयान की हैं, वो इस तरह हैं:
- गुनाहों की माफ़ी: दुरूद पढ़ने से गुनाह माफ़ होते हैं और अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है.
- दिल की सफ़ाई (Dil Ki Safai): इसे पाबंदी से पढ़ने से दिल पाक होता है और अल्लाह की मुहब्बत पैदा होती है.
- नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़ियारत: कुछ बुज़ुर्गों का मानना है कि जो शख़्स ख़ास तरीक़े से दुरूद-ए-ताज पढ़े, उसे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़ियारत का शर्फ़ हासिल हो सकता है.
- मुश्किलों से निजात (Mushkilon Se Nijat): ये दुरूद परेशानियों, बीमारियों और आफ़तों से हिफ़ाज़त का ज़रिया बन सकता है.
- रिज़्क में बरकत (Rizq Mein Barkat): इसे पढ़ने से रिज़्क में कुशादगी (विस्तार) और बरकत होती है.
- अल्लाह की क़ुर्बत (Allah Ki Qurbat): दुरूद पढ़ने वाला अल्लाह के ज़्यादा क़रीब होता है.
ख़ास हिदायत: इन फ़ज़ीलतों का ज़िक्र अहल-ए-इल्म के इस्तक़ामत (अनुभव) पर आधारित है, न कि सीधे तौर पर हदीस से साबितशुदा. इसलिए इन्हें यक़ीनी तौर पर नहीं लेना चाहिए, बल्कि अल्लाह की रहमत पर भरोसा रखना चाहिए.
दुरूद-ए-ताज पढ़ने का तरीक़ा (Durood-e-Taj Padhne Ka Tareeqa)
दुरूद-ए-ताज को पढ़ने का कोई ख़ास तरीक़ा नहीं है जो शरई तौर पर तयशुदा हो, लेकिन इसे इख़लास और अदब के साथ पढ़ना चाहिए.
पढ़ने का तरीक़ा:
- पाक-साफ़ होना: दुरूद पढ़ने से पहले वुज़ू कर लेना बेहतर है.
- क़िबला रुख़ (Qibla Rukh): हो सके तो क़िबले की तरफ़ मुँह करके बैठें.
- इख़लास (Ikhlas): अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की मुहब्बत में, पूरे इख़लास और यकीन के साथ पढ़ें.
- अदब: दिल में अदब और एहतराम पैदा करें.
- वक़्त (Waqt): इसे किसी भी वक़्त पढ़ा जा सकता है, लेकिन सुबह और शाम के औक़ात या फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद पढ़ना मुस्तहब है.
सावधानियाँ (Important Considerations):
- अक़ीदे की दुरुस्तगी (Aqeeday Ki Durustagi): यह दुरूद कुरान या सहीह हदीस से सीधे तौर पर साबित नहीं है. इसमें कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल हुए हैं जिन पर कुछ उलेमा को ऐतराज़ रहा है, ख़ासकर शिर्क के पहलू से बचने के लिए. हमेशा याद रखें कि बीमारियों को दूर करने वाला, रिज़्क देने वाला, और हर मुश्किल को हल करने वाला सिर्फ़ अल्लाह तआला है. नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के भेजे हुए रहमतुल-लिल-आलमीन (तमाम जहानों के लिए रहमत) हैं, लेकिन वह अल्लाह के बंदे और रसूल हैं, न कि अल्लाह की सिफ़ात में शरीक.
- बिदअत से परहेज़ (Bid’at Se Parhez): किसी भी अमल को सुन्नत से ज़्यादा अहमियत न दें जो सुन्नत से साबित न हो.
- सहीह दुरूद को प्राथमिकता (Prioritizing Authentic Duroods): दुरूद-ए-इब्राहिमी (जो नमाज़ में पढ़ा जाता है) सबसे अफ़ज़ल और सहीह दुरूद है. कोशिश करें कि आप ज़्यादा से ज़्यादा वो दुरूद पढ़ें जो हदीस से साबित हैं.
दुरूद-ए-ताज की हक़ीक़त और शरीअत में इसका मक़ाम (Durood-e-Taj Ki Haqeeqat Aur Shareeat Mein Iska Maqam)
जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया, दुरूद-ए-ताज सीधे तौर पर कुरान या किसी सहीह हदीस में मौजूद नहीं है. यह बाद के ज़मानों में मुहब्बत-ए-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) में लिखे गए दुरूद शरीफ़ में से एक है.
उलेमा-ए-किराम का नज़रिया (Views of Scholars):
- एक तबक़ा (A Group of Scholars): कुछ उलेमा इसे पढ़ने की इजाज़त देते हैं, बशर्ते कि पढ़ने वाले का अक़ीदा शिर्क से पाक हो और वह इसे सुन्नत न समझे, बल्कि एक नेकी और मुहब्बत के इज़हार के तौर पर पढ़े. उनका मानना है कि जब तक अल्फ़ाज़ शरीअत के ख़िलाफ़ न हों, दुरूद पढ़ा जा सकता है.
- दूसरा तबक़ा (Another Group of Scholars): कुछ उलेमा दुरूद-ए-ताज को पढ़ने से परहेज़ करने की सलाह देते हैं. उनका तर्क है कि इसमें कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ शामिल हैं जो शिर्क का पहलू रखते हैं (जैसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बलाएँ दूर करने वाला बताना, जबकि ये सिफ़ात सिर्फ़ अल्लाह के लिए हैं). इसके अलावा, उनका कहना है कि जो दुरूद सहीह हदीस से साबित हैं, उन्हें ही पढ़ना बेहतर है ताकि बिदअत से बचा जा सके.
हमारी सलाह (Our Recommendation):
- इल्म हासिल करें: अगर आप दुरूद-ए-ताज पढ़ना चाहते हैं, तो इसका मफ़हूम (अर्थ) अच्छी तरह समझ लें.
- एहतियात (Caution): किसी भी दुरूद को पढ़ते वक़्त इस बात का ख्याल रखें कि सारी ताक़त और कुव्वत अल्लाह के पास है, और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सिर्फ़ अल्लाह के बंदे और रसूल हैं.
- अफज़ल तरीक़ा (Preferred Method): सबसे अफ़ज़ल तरीक़ा यह है कि आप वह दुरूद पढ़ें जो नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से साबित हैं, जैसे दुरूद-ए-इब्राहिमी (Durood-e-Ibrahimi). यह दुरूद हर नमाज़ में पढ़ा जाता है और इसकी फ़ज़ीलतें हदीस से यक़ीनी तौर पर साबित हैं.
6. दुरूद-ए-ताज से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs Related to Durood-e-Taj)
Q1: क्या दुरूद-ए-ताज पढ़ना सुन्नत है?
A1: नहीं, दुरूद-ए-ताज सीधे तौर पर सुन्नत नहीं है, यानी यह हदीस से साबित नहीं है. यह बाद के ज़माने में बुज़ुर्गों द्वारा लिखा गया है. सुन्नत दुरूद वो हैं जो नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सहाबा (रज़िअल्लाहु अन्हुम) को सिखाए थे, जैसे दुरूद-ए-इब्राहिमी.
Q2: दुरूद-ए-ताज किसने लिखा?
A2: दुरूद-ए-ताज के लेखक के बारे में यक़ीनी जानकारी नहीं मिलती, लेकिन इसे किसी बुज़ुर्ग ने लिखा है जो नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से गहरी मुहब्बत रखते थे.
Q3: क्या दुरूद-ए-ताज में कोई शिर्किया बात है?
A3: कुछ उलेमा का मानना है कि दुरूद-ए-ताज में कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे हैं जिनका मफ़हूम अगर ग़लत समझा जाए तो वह शिर्क की तरफ़ ले जा सकता है, जैसे बीमारियों को दूर करने की सिफ़त अल्लाह के अलावा किसी और से मंसूब करना. इसलिए, इसे पढ़ते वक़्त अक़ीदे की दुरुस्तगी बहुत ज़रूरी है.
Q4: दुरूद-ए-ताज के क्या ख़ास फ़ायदे हैं?
A4: दुरूद-ए-ताज के ख़ास फ़ायदे, जैसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़ियारत या ख़ास मुश्किलों से निजात, इल्म-ए-इस्तक़ामत (अनुभव) से बयान किए गए हैं. शरीअत में इनकी यक़ीनी दलीलें नहीं मिलतीं. हालांकि, हर दुरूद पढ़ने पर सवाब मिलता है और अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है.
आखिरी अल्फ़ाज़
दुरूद-ए-ताज नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शान में पढ़ा जाने वाला एक दुरूद है, जिसे बहुत से मुसलमान पढ़ते हैं. इसे पढ़ते वक़्त सबसे अहम बात यह है कि आपका अक़ीदा अल्लाह की वहदानियत (अकेलापन) पर मज़बूत रहे और यह यकीन पुख़्ता हो कि हर चीज़ का मालिक और क़ादिर सिर्फ़ अल्लाह तआला है. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के आख़िरी रसूल हैं जिन पर दुरूद भेजना एक अज़ीम इबादत है.
अगर आप दुरूद-ए-ताज पढ़ना चाहें, तो इसका मफ़हूम अच्छी तरह समझ लें और अपने अक़ीदे को हमेशा शिर्क से पाक रखें. सबसे बेहतर यह है कि आप वो दुरूद पढ़ें जो सहीह हदीस से साबित हैं, क्योंकि उनमें किसी भी तरह के शक या शिर्क का कोई पहलू नहीं होता. हर दुरूद जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर भेजा जाता है, अल्लाह के यहाँ क़बूल होता है और हमें उसका अज्र मिलता है.
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य इस्लामी इल्म पर आधारित है. किसी भी ख़ास मसले पर, ख़ासकर अक़ीदे से जुड़े मामलों में, मुस्तनद आलिम-ए-दीन से मशवरा करना हमेशा बेहतर होता है.
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