Jism ke Dard ki dua | दर्द से शिफा की दुआ हिंदी में

jism ke dard ki dua in hindi

Jism ke Dard ki Dua: इंसानी ज़िंदगी में दर्द और बीमारियाँ एक हक़ीक़त हैं। कभी जिस्म के किसी हिस्से में दर्द होता है, तो कभी पूरे बदन में। इन तकलीफ़ों के दौरान, एक मुसलमान अल्लाह तआला की तरफ़ रुजू करता है और दुआ के ज़रिए शिफ़ा की उम्मीद रखता है। इस्लाम में दुआ को इबादत का मग़ज़ कहा गया है, और यह अल्लाह से जुड़ने का सबसे क़रीबी ज़रिया है। अगर आप jism ke dard ki dua या dard ki dua in hindi तलाश कर रहे हैं, तो यह लेख आपको हदीस और क़ुरान से साबित ऐसी दुआएँ बताएगा, जिनसे आपको दर्द से राहत और शिफ़ा हासिल करने में मदद मिलेगी।

इस्लाम में दर्द और सब्र की अहमियत

दर्द को अक्सर एक आज़माइश के तौर पर देखा जाता है, जो गुनाहों का कफ़्फ़ारा बन सकता है। जब एक मुसलमान दर्द या तकलीफ़ में सब्र करता है और अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो उसे इसका अज़ीम सवाब मिलता है। हमारे प्यारे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी अपनी ज़िंदगी में कई तकलीफ़ें सही हैं और हमेशा अल्लाह से शिफ़ा की दुआ की है। उन्होंने हमें सिखाया कि हर मुश्किल में अल्लाह की तरफ़ पलटें और सब्र से काम लें। dard se shifa ki dua माँगना और bimari se shifa ki dua करना अल्लाह की रहमत पर कामिल यक़ीन की निशानी है।

जिस्म के दर्द से शिफ़ा की मुख़्तलिफ़ दुआएं (हदीस की रौशनी में)

दर्द से शिफ़ा के लिए हदीसों में कई दुआएं बताई गई हैं। इनमें से एक बहुत ही मुअस्सिर (प्रभावी) दुआ हज़रत उस्मान बिन अबुल आस (रज़ि.) से मरवी है, जिन्होंने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अपने जिस्म में दर्द की शिकायत की थी।

दर्द वाली जगह पर हाथ रखकर पढ़ी जाने वाली दुआ


यह दुआ जिस्म के किसी भी हिस्से में होने वाले दर्द के लिए बेहद मुफीद है।

पढ़ने का तरीक़ा:

अपने दर्द वाली जगह पर हाथ रखें और यह दुआ पढ़ें:

सबसे पहले 3 बार ‘बिस्मिल्लाह‘ (بِسْمِ اللَّهِ) कहें।

फिर 7 बार यह दुआ पढ़ें:

अरबी: أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ

Badan dard ki dua in hindi: अऊज़ु बिल्लाहि व कुद्रतिही मिन शर्रि मा अजिदु व उहाज़िरु।

हिंदी: मैं अल्लाह और उसकी क़ुदरत की पनाह चाहता हूँ, उस चीज़ के शर से जिसे मैं महसूस करता हूँ और जिससे डरता हूँ।

(सही मुस्लिम, हदीस: 2202)

यह दुआ dard ki dua sunnat se साबित है और नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ख़ुद इसकी तालीम दी है। यह सिर्फ badan dard ki dua ही नहीं, बल्कि sar dard ki dua, pet dard ki dua, pair dard ki dua, या जिस्म के किसी भी हिस्से के दर्द के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।

bimari se shifa ki dua in hindi

आम दर्द और हर बीमारी के लिए नबवी दुआ
यह एक आम और बहुत ही बरकत वाली दुआ है जो हर तरह की बीमारी और दर्द के लिए पढ़ी जा सकती है:


अरबी: اَللَّهُمَّ رَبَّ النَّاسِ، أَذْهِبِ الْبَاسَ، اشْفِ أَنْتَ الشَّافِي، لَا شِفَاءَ إِلَّا شِفَاؤُكَ، شِفَاءً لَا يُغَادِرُ سَقَمًا


Bimari se shifa ki dua in hindi: अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल बा’स, इश्फ़ि अंताश-शाफ़ी, ला शिफ़ा-अ इल्ला शिफ़ा-उका, शिफ़ा-अल्ला युग़ादिरु सक़मा।


हिंदी : ऐ अल्लाह! लोगों के रब! इस तकलीफ़ को दूर कर दे। तू ही शिफ़ा देने वाला है। तेरी शिफ़ा के सिवा कोई शिफ़ा नहीं है। ऐसी शिफ़ा अता फ़रमा जो किसी बीमारी को बाक़ी न छोड़े।


(सही बुखारी, हदीस: 5742; सही मुस्लिम, हदीस: 2191)


यह दुआ ख़ास तौर पर har bimari ki dua के तौर पर पढ़ी जाती है और इसमें अल्लाह की शिफ़ा देने वाली सिफ़ात का ज़िक्र है।

क़ुरान से दर्द और शिफ़ा के लिए आयतें

क़ुरान पाक शिफ़ा का ज़रिया है। इसकी तिलावत और कुछ ख़ास आयतों को दर्द और बीमारियों में पढ़ना बहुत फ़ायदेमंद है।

सूरह फ़ातिहा (अश्-शिफ़ा)
सूरह फ़ातिहा को ‘अश्-शिफ़ा’ यानी शिफ़ा देने वाली सूरत भी कहा जाता है। इसे हर नमाज़ में पढ़ने के अलावा बीमारियों और दर्द में भी पढ़ना चाहिए।


अरबी (शुरुआती हिस्सा): بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِۙ اَلۡحَمۡدُ لِلّٰہِ رَبِّ الۡعٰلَمِیۡنَۙ


Bimari se shifa ki dua quran se: बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम। अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन।


हिंदी: अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बहुत रहम करने वाला है। तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं, जो तमाम जहानों का रब है।
(सूरह अल-फ़ातिहा, आयत 1-2)

सूरह बनी इस्राईल की आयत (शिफ़ा के बारे में)


अल्लाह तआला ने क़ुरान में फ़रमाया:
अरबी: وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ


Shifa ki qurani dua in hindi: व नुनज्ज़िलु मिनल क़ुरआनि मा हुवा शिफ़ा-उंव व रहमतुल लिलमुअमिनीन।


हिंदी: और हम क़ुरान में वो चीज़ नाज़िल करते हैं जो ईमान वालों के लिए शिफ़ा और रहमत है।
(सूरह अल-इसरा, आयत 82)


इस आयत को भी quran se dard ki dua के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि यह ज़ाहिर करती है कि क़ुरान अपने आप में शिफ़ा है।

क़ुल (तीन क़ुल) सूरह


क़ुरान की आखिरी तीन सूरतें – सूरह इख़्लास (क़ुल हुवल्लाहु अहद), सूरह फ़लक (क़ुल अऊज़ु बिरब्बिल फ़लक) और सूरह नास (क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन नास) – को ‘तीन क़ुल’ कहा जाता है। ये हिफाज़त और शिफ़ा के लिए बहुत मुफीद हैं। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सोने से पहले इन्हें पढ़कर अपने हाथों पर दम करते और फिर पूरे जिस्म पर फेरते थे।

दुआ क़ुबूल होने के आदाब और शर्तें

दुआ की क़ुबूलियत के लिए कुछ आदाब और शर्तें हैं जिनका ध्यान रखना चाहिए:

  • यक़ीन और इख़लास: इस यक़ीन के साथ दुआ करें कि अल्लाह ही शिफ़ा देने वाला है और वही आपकी दुआ सुनेगा।
  • पाकीज़गी: गुस्ल या वज़ू की हालत में दुआ करना बेहतर है।
  • हलाल रोज़ी: ये सुनिश्चित करें कि आपकी रोज़ी हलाल हो, क्योंकि हराम रोज़ी दुआ की क़ुबूलियत में रुकावट बन सकती है।
  • दुआ के औक़ात: तहज्जुद का वक़्त, अज़ान और इक़ामत के दरमियान, बारिश के वक़्त और सजदे की हालत में दुआ ज़्यादा क़ुबूल होती है।
  • सब्र और इस्तिक़ामत: एक बार दुआ करने के बाद मायूस न हों, बल्कि बार-बार करते रहें।

अहम तंबीह: दुआ के साथ इलाज भी ज़रूरी

इस्लाम हमें ये भी सिखाता है कि दुआ के साथ-साथ अस्बाब (साधनों) को इख़्तियार करना भी ज़रूरी है। अगर आपको दर्द या बीमारी है, तो डॉक्टर से सलाह लेना और सही इलाज करवाना भी सुन्नत है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ख़ुद भी इलाज करवाया और दूसरों को भी इसका हुक्म दिया। दुआ एक रुहानी इलाज है, जबकि डॉक्टर से इलाज जिस्मानी। दोनों को एक साथ अपनाना चाहिए ताकि dard ka ilaj islami tariqa मुकम्मल हो सके।

आख़िरी शब्द

जिस्मानी दर्द और बीमारियाँ अल्लाह की तरफ़ से आज़माइश होती हैं, जिनसे गुनाह माफ़ होते हैं और दरजात बुलंद होते हैं। इन हालात में दुआ एक मोमिन का सबसे बड़ा सहारा है। अल्लाह तआला की रहमत और कुदरत पर यक़ीन रखते हुए, हदीस और क़ुरान से बताई गई इन दुआओं को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं। यक़ीनन, अल्लाह आपकी दुआओं को सुनेगा और आपको शिफ़ा अता फ़रमाएगा।
अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हम सब को हर तकलीफ़ और बीमारी से महफूज़ रखे और जब भी कोई दर्द या मर्ज़ आए, तो हमें सब्र और शिफ़ा अता फ़रमाए। आमीन।

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