Tahajjud ki Namaz ki Kitni Rakat Hoti hai | तहज्जुद की नमाज़ की रकात

tahajjud ki namaz ki rakat kitni hoti hai

बिस्मिल्लाह-इर-रहमान-इर-रहीम

अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकातुहू, अजीज़ कारीन-ए-नज़र, आज हम आप के साथ एक निहायत ही अहम और फज़ीलत वाले मौज़ू पर गुफ्तगू करेंगे। यह मौज़ू है “Tahajjud Ki Namaz ki Kitni hoti hai?” इस मकाले में हम इस सवाल का जवाब देने के साथ-साथ तहज्जुद की नमाज़ से मुताल्लिक तमाम ज़रूरी मालूमात भी फराहम करेंगे। अल्लाह तआला से दुआ है के यह इल्म हमें और आप को नफा बख्शे और हमारे अमल में इज़ाफा का ज़रिया बने। आमीन।

तहज्जुद की नमाज़ का तारुफ

तहज्जुद की नमाज़ इस्लाम में एक निहायत ही अहम और फज़ीलत वाली नफ्ल नमाज़ है। यह वो नमाज़ है जिसे रात के आखिरी हिस्से में अदा किया जाता है। अल्लाह तआला ने इस नमाज़ को कुरान-ए-करीम में ज़िक्र फरमाया है:

“और रात के कुछ हिस्से में इस (कुरान) की तिलावत करके तहज्जुद अदा करो। यह तुम्हारे लिए एक ज़ाइद (नफ्ली) इबादत है। करीब है के तुम्हारा रब तुम्हें मकाम-ए-महमूद पर फाइज़ करे।” (सूरह अल-इसरा, आयत 79)

तहज्जुद की नमाज़ की रकात की तादाद

अब हम आते हैं हमारे असल सवाल की तरफ: tahajjud ki namaz ki rakat kitni hai? इस सवाल का जवाब देने से पहले, यह समझना ज़रूरी है के तहज्जुद एक नफ्ल नमाज़ है, जिस की कोई मुकर्रर तादाद नहीं है। लेकिन हदीस-ए-नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से हम इस के बारे में रहनुमाई हासिल कर सकते हैं।

1. कम से कम रकात:


तहज्जुद की नमाज़ कम से कम 2 रकात अदा की जा सकती है। यह वो मिनिमम तादाद है जिसे कोई शख्स तहज्जुद के लिए अदा कर सकता है।

2. 2 ज़्यादा से ज़्यादा रकात:


हदीस-ए-नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से मालूम होता है के आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अक्सर 8 रकात तहज्जुद की नमाज़ अदा फरमाते थे। लेकिन कुछ रिवायत में 12 रकात तक का ज़िक्र भी मिलता है।

3. बेहतर तादाद:


आम तौर पर, 8 रकात तहज्जुद की नमाज़ को अफज़ल समझा जाता है। यह तादाद रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत से साबित है।

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तहज्जुद की नमाज़ अदा करने का तरीका

तहज्जुद की नमाज़ अदा करने का तरीका बहुत आसान है:

दो-दो रकात करके अदा करें:
तहज्जुद की नमाज़ दो-दो रकात करके अदा की जाती है। हर दो रकात के बाद सलाम फेर लें।

नीयत:
हर दो रकात से पहले दिल में तहज्जुद की नीयत करें।

किरात:
हर रकात में सूरह फातिहा के बाद कोई भी सूरह या कुरान की आयात पढ़ सकते हैं। बेहतर है के लंबी सूरतें या आयात पढ़ी जाएं।

दुआ:
हर दो रकात के बाद अल्लाह तआला से अपने दिल की बात करें और दुआ मांगें।

तहज्जुद की नमाज़ का अफज़ल वक्त

तहज्जुद की नमाज़ का अफज़ल वक्त रात का आखिरी तिसरा हिस्सा है। अल्लाह तआला कुरान-ए-करीम में फरमाता है:

“और रात के आखिरी हिस्से में अल्लाह की तस्बीह करते हैं।” (सूरह अज़-ज़ारियात, आयत 18)

हदीस-ए-नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) में भी इस वक्त की फज़ीलत बयान की गई है। रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

“हमारा रब हर रात जब रात का आखिरी तिसरा हिस्सा बाकी रहता है तो दुनिया के आसमान पर नुज़ूल फरमाता है और कहता है: ‘कोई है जो मुझे पुकारे, मैं उस की दुआ कुबूल करूं? कोई है जो मुझ से मांगे, मैं उसे अता करूं? कोई है जो मुझ से मगफिरत तलब करे, मैं उसे बख्श दूं?'” (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)

तहज्जुद की नमाज़ की फज़ीलत

तहज्जुद की नमाज़ की बेशुमार फज़ीलत हैं। यहां हम कुछ अहम फज़ाइल का ज़िक्र करेंगे:

अल्लाह तआला की कुर्बत:


तहज्जुद की नमाज़ इंसान को अल्लाह तआला के करीब ले जाती है। रात के वक्त जब दुनिया सो रही होती है, बंदा अपने रब से राज़-ओ-नियाज़ करता है।

गुनाहों की मगफिरत:


तहज्जुद की नमाज़ गुनाहों की मगफिरत का ज़रिया है। रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: “तुम पर लाज़िम है रात की नमाज़, क्यूं के यह तुम से पहले नेक लोगों का तरीका था। यह तुम्हें अल्लाह तआला के करीब करती है, गुनाहों से दूर करती है, बुराइयों से बचाती है और जिस्म से बीमारियां दूर करती है।” (तिरमिज़ी)

रिज़्क में बरकत:


तहज्जुद की नमाज़ रिज़्क में बरकत का ज़रिया है। अल्लाह तआला इस नमाज़ की वजह से बंदे के रिज़्क में कुशादगी अता फरमाता है।

दुआ की कुबूलियत:


तहज्जुद के वक्त की गई दुआ कुबूल होने के ज़्यादा करीब होती है। यह वो वक्त है जब अल्लाह तआला अपने बंदों की दुआओं को सुनने के लिए दुनिया के आसमान पर नुज़ूल फरमाता है।

आखिरत में बुलंद दरजात:


तहज्जुद की नमाज़ आखिरत में बुलंद दरजात का ज़रिया है। अल्लाह तआला कुरान-ए-करीम में फरमाता है: “करीब है के तुम्हारा रब तुम्हें मकाम-ए-महमूद पर फाइज़ करे।” (सूरह अल-इसरा, आयत 79)

तहज्जुद की नमाज़ शुरू करने के लिए मशवरे

अगर आप तहज्जुद की नमाज़ शुरू करना चाहते हैं तो यह कुछ मशवरे हैं:

धीरे धीरे शुरू करें:


एक दम से 8 या 12 रकात शुरू न करें। 2 रकात से शुरू करें और फिर धीरे धीरे बढ़ाते जाएं।

वक्त मुकर्रर करें:


अपने सोने और उठने का वक्त मुकर्रर करें ताके आप आसानी से तहज्जुद के लिए उठ सकें।

इख्लास से अदा करें:


सिर्फ अल्लाह तआला की रज़ा के लिए तहज्जुद अदा करें। रिया और दिखावे से बचें।

दुआ पर तवज्जोह दें:


तहज्जुद के बाद दुआ पर खास तवज्जोह दें। अपने दिल की बात अल्लाह तआला से करें।

इस्तिकामत रखें:


अगर किसी दिन मिस हो जाए तो मायूस न हों। अगली रात दोबारा शुरू कर दें।

आखरी शब्द:

अजीज़ कारीन-ए-नज़र, तहज्जुद की नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो इंसान को अल्लाह तआला के निहायत करीब ले जाती है। इस की रकात की तादाद मुकर्रर नहीं, लेकिन बेहतर यह है के कम से कम 2 रकात और ज़्यादा से ज़्यादा 12 रकात अदा की जाएं। याद रखें, इबादत में कसरत से ज़्यादा इख्लास और इस्तिकामत अहम है।

अल्लाह तआला से दुआ है के वो हमें तहज्जुद की नमाज़ की तौफीक अता फरमाए और इस के ज़रिये अपनी रहमत और मगफिरत से नवाज़े। आमीन।

वल्लाहु आलम बिस्सवाब।

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