Tasbeeh E Fatima: एक बार की बात है, एक बहुत ही खास खातून थीं जिनका नाम सय्यिदा फातिमा ज़हरा (स.अ.) है। वो नबी पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की बेटी और इमाम अली (अ.स.) की बीवी है। सय्यिदा फातिमा ज़हरा (स.अ.) घर में बहुत मेहनत करती थीं, जैसे कि पत्थर की चक्की से जौ पीसना। इस मेहनत से उनके हाथों में चोट लग जाती थी।
एक दिन, इमाम अली (अ.स.) ने मशवरा दिया कि वो अपने वालिद, पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) से एक नौकरानी मांग लें ताकि घर के काम में मदद हो सके। जब सय्यिदा फातिमा ज़हरा (स.अ.) ने नौकरानी मांगी, तो पैगंबर (स.अ.व.) ने उन्हें कुछ और ही दिया, जो बहुत बेहतर था। उन्होंने एक खास दुआ सिखाई जिसे Tasbeeh E Fatima ज़हरा (स.अ.) कहते हैं।
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Tasbeeh E Fatima kya hai
Tasbeeh e Fatima Zahra (स.अ.) एक आसान लेकिन ताक़तवर दुआ है। इसमें अल्फ़ाज़ कहे जाते हैं:
- सुब्हानल्लाह – 33 बार
- अलहमदुलिल्लाह – 33 बार
- अल्लाहु अकबर – 34 बार
- ला इलाहा इल्लल्लाह – 1 बार
यह दुआ बहुत खास है और कई बरकतें लाती है। पैगंबर (स.अ.व.) ने फरमाया कि यह दुआ नौकरानी से भी बेहतर है और इस दुनिया की हर चीज़ से भी बेहतर है!
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अल्लाह को याद करने का महत्व
सूरा अल-अहज़ाब आयत 35 हमें बताती है कि अल्लाह उन लोगों को माफ़ी और बड़ा इनाम देने का वादा करता है जो उसे अक्सर याद करते हैं। इमाम जाफर अल-सादिक (अ.स.) ने समझाया कि तस्बीह-ए-फातिमा ज़हरा (स.अ.) पढ़ने से हम उन खास लोगों में शामिल हो जाते हैं जो अल्लाह को बहुत याद करते हैं।
पैगंबर (स.अ.व.) ने भी कहा था कि जो लोग अल्लाह को सबसे ज्यादा याद करते हैं, वो क़ियामत के दिन सबसे ऊंचे दर्जे पर होंगे। इमाम जाफर अल-सादिक (अ.स.) ने भी सिखाया कि बच्चों को नमाज़ पढ़ना और तस्बीह पढ़ना सिखाकर, वो मुसीबतों से बचेंगे, उनके गुनाह माफ़ होंगे, और उन्हें जन्नत के काबिल बनाया जाएगा।
Tasbeeh e Fatima in Hindi कैसे पढ़ें
Tasbeeh e Fatima Fazilat: इस तरह पढ़े:
- अल्लाहु अकबर: “अल्लाहु अकबर” 34 बार कहें। इसका मतलब है कि अल्लाह सब कुछ से बड़ा है।
- अलहमदुलिल्लाह: “अलहमदुलिल्लाह” 33 बार कहें। इसका मतलब है कि सारी तारीफें सिर्फ अल्लाह के लिए हैं।
- सुब्हानल्लाह: “सुब्हानल्लाह” 33 बार कहें। इसका मतलब है कि अल्लाह की महिमा है।
- ला इलाहा इल्लल्लाह: “ला इलाहा इल्लल्लाह” 1 बार कहें। इसका मतलब है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है।
यह दुआ हर नमाज़ के बाद और रात को सोने से पहले पढ़ना सबसे अच्छा है।
तस्बीह के मनके की कहानी
शुरुआत में, सय्यिदा फातिमा ज़हरा (स.अ.) एक ऊनी धागे का उपयोग करती थीं जिसमें सौ गांठें थीं ताकि तस्बीह पढ़ते समय गिन सकें। बाद में, जब हज़रत हमज़ा, पैगंबर (स.अ.व.) के चाचा, उहद की जंग में शहीद हो गए, तो उनकी कब्र की मिट्टी से पहले तस्बीह के मनके बनाए गए।
जब इमाम हुसैन (अ.स.) कर्बला में शहीद हुए, तो उनकी कब्र की आसपास की मिट्टी से भी तस्बीह के मनके बनाए गए, जिससे वे और भी खास बन गए।
तस्बीह के अल्फ़ाज़ का मतलब
- अल्लाहु अकबर: इसका मतलब है कि अल्लाह वह सब कुछ से बड़ा है जो हम सोच सकते हैं। वह तमाम मखलूकात से आला है और पूरे कायनात से बड़ा है। ये वो पहले अल्फ़ाज़ हैं जो एक नवजात मुस्लिम सुनता है और वो आखिरी अल्फ़ाज़ हैं जो एक शख्स मरते समय सुनता है।
- अलहमदुलिल्लाह: इसका मतलब है कि सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं। इसे कहकर, हम अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं और उसकी अज़मत को याद करते हैं। यह हमें उसकी शान को देखने और समझने में मदद करता है।
- सुब्हानल्लाह: इसका मतलब है कि अल्लाह की महिमा है। इसका मतलब है कि अल्लाह में कोई कमी या ऐब नहीं है। “सुब्हानल्लाह” कहने से फ़रिश्ते हमारे लिए दुआएं और बरकतें भेजते हैं। यह हमें परेशानियों और मुश्किलों से भी बचाता है।
Tasbeeh e Fatima padhne ke Fayde
तस्बीह-ए-फातिमा ज़हरा (स.अ.) पढ़ने के कई फायदे हैं:
- यह हमें मुसीबतों से बचाता है।
- हमारे गुनाह माफ़ होते हैं।
- हम जन्नत के काबिल बनते हैं।
- फ़रिश्ते हमारी हिफाज़त करते हैं।
- हम त्रासदियों से बचते हैं।
- यह दर्द को ठीक करता है और सुकून लाता है।
आखरी शब्द
तस्बीह-ए-फातिमा ज़हरा (स.अ.) एक आसान लेकिन ताक़तवर दुआ है जो पैगंबर (स.अ.व.) ने अपनी प्यारी बेटी, सय्यिदा फातिमा ज़हरा (स.अ.) को सिखाई थी। यह हमें अल्लाह की अज़मत को याद दिलाती है, हमें उसका शुक्रिया अदा करने में मदद करती है, और हमारी ज़िन्दगी में कई बरकतें लाती है। इस तस्बीह को नियमित रूप से पढ़ने से हमें हिफाज़त, माफी, और जन्नत में एक खास मकाम मिल सकता है।