ज़ील हज्ज के 10 दिनों की फजीलत |Zil Hajj Wazifa

Zil Hajj के पहले दस दिनों की बड़ी अहमियत और फजीलत बयान की गई है, खासकर सात, आठ, नौ, और दस तारीखों की रातें। इन रातों को इबादत और दुआओं के लिए बहुत खास माना जाता है, क्योंकि इन दिनों में अल्लाह तआला अपनी रहमतों और बरकतों के दरवाजे खोल देते हैं।

इन मुबारक रातों में एक खास वजीफा पढ़ने की ताकीद की गई है। इस वजीफे को आसमान की तरफ देखकर पढ़ने से अल्लाह की बेशुमार रहमतें और बरकतें नसीब होती हैं।

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Zil Hajj ka Fazifa

Zil Hajj के 10 दिनों की फजीलत

यह वजीफा है: “या रज़्ज़ाको या रहमान, या मोईज़्जू या गफ्फार।” “Ya Razzako ya Rahman, Ya Moeezzu ya Ghaffar” इस वजीफे को कम से कम सात बार पढ़ें और अगर मुमकिन हो तो इसे 700 बार पढ़ें, अव्वल और आख़िर में दूरूद शरीफ के साथ।

इस वजीफे को पढ़ने के बाद अल्लाह से अपनी नेक और जायज़ दुआएं मांगे। इन रातों में इबादत करने का खास महत्व है। Zil Hajj की इन रातों में अल्लाह पाक इंसानों के मुकद्दर को बदल देता है, उनके गुनाहों को माफ कर देता है और उनकी दुआओं को कुबूल करता है।

इसलिए इन रातों में खूब इबादत और जिक्र करना चाहिए। इन रातों में ज्यादा से ज्यादा वक्त अल्लाह की याद में बिताना चाहिए और उसके सामने अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए।

इसके अलावा, 1 ज़ील हिज्जा से लेकर 13 ज़ील हिज्जा तक खूब तकबीर पढ़ने की भी ताकीद की गई है। तकबीर इस तरह है: “अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर ला इलाहा इलल्लाह वा’अल्लाहुअकबर अल्लाहुअकबर वा लिल्लाहिल हम्द।” “Allahu-Akbar. Allahu- Akbar. Laa ilaaha illallah. Wa-Allahu Akbar. Allahu- Akbaar. Wa lillaahil-Hamd”

इस तकबीर को बार-बार पढ़ने से अल्लाह की महानता और उसकी शक्ति का एहसास होता है और दिल को सुकून मिलता है।

ज़ील हज्ज के इन दस दिनों की काफी फजीलत बयान की गई है। इन दिनों के दौरान अल्लाह की खूब हम्दो सना बयान करने की तर्गीब दी गई है। यह दिन तौबा और इस्तिगफार के हैं, और अपने गुनाहों की माफी मांगने के लिए बेहतरीन वक्त हैं।

अल्लाह तआला इन दिनों में अपने बंदों पर खास रहमतें नाजिल करता है और उनकी दुआओं को कुबूल करता है। इसलिए हमें इन दिनों का भरपूर फायदा उठाना चाहिए और अल्लाह की बारगाह में सिर झुका कर उसके सामने अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए।

इन दिनों में रोजे रखने की भी बहुत फजीलत है। खासकर अराफात के दिन का रोजा, जो 9 Zil Hajj को होता है, बहुत फायदेमंद माना जाता है। यह रोजा पिछले और अगले साल के गुनाहों का कफ्फारा होता है।

इन पाक दिनों में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने का भी बड़ा सवाब है। कुरबानी का अमल भी ज़ील हज्ज के दिनों में खासकर 10 Zil Hajj को किया जाता है। यह अमल हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की सुन्नत है और अल्लाह की राह में अपनी अज़ीज़ चीज कुर्बान करने का प्रतीक है।

इन सब अमलात के जरिए हम अल्लाह की रज़ा और बरकत हासिल कर सकते हैं और अपनी दुआओं को कुबूल करा सकते हैं। लिहाज़ा, इन मुबारक दिनों में खूब इबादत करें, तकबीर पढ़ें, रोजे रखें और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगें। अल्लाह हम सबकी दुआओं को कुबूल करे और हम पर अपनी रहमतें नाजिल फरमाए।

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