Qurbani ki Dua: कुर्बानी, जिसे Bakra Eid या ईद-उल-अज़हा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म में एक अहम इबादत है। Bakri Eid त्यौहार हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अल्लाह के लिए बेइंतहां तवक्कुल और उनकी द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में मनाया जाता है।
हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने का फैसला लिया था। अल्लाह ने उनकी इबादत को कबूल किया और उनके बेटे की जगह एक बड़ा ज़बीह भेजा। इस वाक़ये की याद में मुसलमान हर साल कुर्बानी करते हैं।
कुर्बानी क्यों की जाती है: (Qurbani Kyun Karte Hai)
Bakra Eid पर कुर्बानी का मकसद सिर्फ जानवर की कुर्बानी नहीं है, बल्कि ये अल्लाह के प्रति अपने ईमान और इबादत को दिखाने का तरीका है। ये इस बात की निशानी है कि इंसान अल्लाह के हुक्म के आगे किसी भी चीज़ की कुर्बानी देने के लिए तैयार है।
जुमा के दिन की फज़ीलत
कुर्बानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमें अपने ख्वाहिश को छोड़कर अल्लाह की राह में अपनी अजीज और महंगी चीज़ों की कुर्बानी देने को तैयार रहना चाहिए।
कुर्बानी किस ज़बीह से होती है:
Eid ul Adh-ha में ज़बीह की खास अहमियत होती है। ये जानवर शरई हुक्म के मुताबिक होना चाहिए। कुर्बानी के लिए मुख्यतः तीन प्रकार के जानवर होते हैं:
- बकरी (या बकरा)
- भेड़ (या मेमना)
- ऊंट
ये जानवर तयशुदा उम्र और सेहतमंद होने चाहिए। इन ज़बीह की उम्र इस प्रकार होनी चाहिए:
- बकरी: कम से कम एक साल (या कम से कम उसके आगे के दो दांत निकल आएं हो)
- भेड़: कम से कम छह महीने (अगर वह एक साल के जानवर जैसा दिखता हो)
- ऊंट: कम से कम पांच साल
कुर्बानी का सुन्नत तरीका: (Qurbani ka Tarika hindi me)
कुर्बानी का सुन्नत तरीका हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीसों से लिया गया है। कुर्बानी करते समय कुछ जरूरी बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
- नीयत: कुर्बानी करते समय नीयत करना जरूरी है कि ये कुर्बानी सिर्फ अल्लाह के लिए है।
- ज़िबाह करने का औजार: जो धारदार हो और ज़बीह को तकलीफ न दे।
- जानवर की हालत: ज़बीह को पहले पानी पिलाएं और उसे आरामदायक स्थिति में रखें।
- कुर्बानी से पहले Qurbani ki Dua पढ़ना चाहिए:
- बिस्मिल्लाह और तकबीर: ज़बीह को ज़ीबा करने से पहले और करते वक्त “बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर” कहना चाहिए।
- क़िबला की दिशा: ज़बीह का मुँह क़िबला की तरफ होना चाहिए।
कुर्बानी का समय: (Qurbani ka time kab hai)
कुर्बानी का समय ईद-उल-अज़हा की नमाज़ के बाद से शुरू होता है और ये तीन दिनों तक जारी रहता है। ये दिन इस्लामी कैलेंडर के 10, 11, और 12 ज़ुलहिज्जा होते हैं। सबसे बेहतर समय पहले दिन की कुर्बानी माना जाता है।
कुर्बानी करते वक्त कुछ दुआएं पढ़ी जाती हैं। ये दुआएं अल्लाह से बरकत और कुर्बानी की कबूलियत की दुआ करती हैं:
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईद के दिन दो मेंढो की कुर्बानी की, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको किब्ला रुख किया तो ये कलिमात इरशाद फरमाएं:
कुर्बानी की दुआ हिंदी में: (Qurbani ki dua Hindi me)
"ईन्नी वज्जहतू वजहीया लिललज़ी फातारस समावाती वल अरदा
हनीफव वमा अना मीनल मुशरीकिन, इन्ना सलाती वा नुसुकी वा महयाया
वा मामाती लिल्लाही रब बील आलमीन,
ला शरीका लहू वा बिज़ालिका उमीरतू वा अना अव्वलू मीनल मुसलीमीन,
अल्लहुम्मा मिनका वा लका अन मुहम्मदिव व उम्मातिही (बिस्मिल्लही वा
अल्लाहू अकबर)"
(मुहम्मदिव व उम्मातिही की जगह जिसकी तरफ से कुरबानी हो उसका
नाम ले और अपनी तरफ से हो तो वा लका अन्नी कहे)
सुनन इब्न माज़ा, जिल्द 3, हदीस 2- हसन
Qurbani Dua in English:
Enni wajjahtu vazheiya lilalzi fataras samavati wal arda Hanifav wama ana minal mushrikin, inna salati wa nusuqi wa mahayaya Wa Maamati Lillahi Rab Beel Alameen, La Sharika Lahu wa Bijalika Umirtu wa Ana Avvlu Meenal Muslimeen, Allahumma minaka wa laka an muhammadiv wa ummatihi (मुहम्मदिव व उम्मातिही की जगह जिसकी तरफ से कुरबानी हो उसका
नाम ले और अपनी तरफ से हो तो वा लका अन्नी कहे)
ज़ीबह करने की दुआ: (Zibah Karne ki dua)
जब ज़बीह को ज़ीबा करें तो उस वक्त ये दुआ पढ़ें:
- कुर्बानी करते वक्त: “बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर”
“Bismillah, Allahu Akbar”
कुर्बानी की अहमियत और समाज में असर:
कुर्बानी सिर्फ एक मज़हबी फर्ज़ नहीं, बल्कि इसका समाज पर भी गहरा असर होता है। इस मौके पर लोग मिलकर खुशियाँ मनाते हैं और एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियाँ बाँटते हैं। कुर्बानी का गोश्त तीन हिस्सों में तक़सीम किया जाता है:
- एक हिस्सा अपने परिवार के लिए
- एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए
- एक हिस्सा गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए
इससे समाज में बराबरी और भाईचारे की भावना बढ़ती है। गरीब और बेसहारा लोगों को भी इसका फायदा मिलता है, जो शायद साल में सिर्फ इसी मौके पर अच्छा खाना खा पाते हैं।
कुर्बानी के फायदे:
कुर्बानी से कई दीनी और दुनियावी फायदे हैं:
- अल्लाह के हुक्म की तामील: कुर्बानी अल्लाह की इबादत है और इससे उसकी रहमतें और बरकतें मिलती हैं।
- गरीबों की मदद: कुर्बानी का गोश्त गरीबों तक पहुँचाने से समाज में बराबरी और भाईचारा बढ़ता है।
- मज़हबी तालीम: इससे अगली पीढ़ी को दिन के प्रति जागरूकता और धार्मिक परंपराओं का ज्ञान मिलता है।
- रूहानी सुकून: कुर्बानी करते वक्त इंसान अपनी नफ्स की इच्छाओं को कुर्बान करता है, जिससे उसे मानसिक सुकून मिलता है।
ज़ील हज्ज के पहले 10 दिन की फजीलत:
ज़ील हज्ज के पहले दस दिनों की अहमियत और फजीलत बहुत ज़्यादा है। इस्लाम में इन दिनों को इबादत, दुआ और तौबा के लिए खास माना गया है। सात, आठ, नौ, और दस ज़ील हज्ज की रातें इबादत के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि अल्लाह तआला इन रातों में रहमतों और बरकतों के दरवाजे खोलते हैं।
इन रातों में “या रज़्ज़ाको या रहमान, या मोईज़्जू या गफ्फार” वजीफा सात बार से 700 बार पढ़ने की सलाह दी गई है, जिसके बाद अल्लाह से नेक दुआ मांगी जाती है। यह वजीफा अल्लाह की बेशुमार रहमतें और बरकतें लाता है।
इन दिनों में खूब इबादत और अल्लाह की याद में वक्त बिताना चाहिए। 1 से 13 ज़ील हज्ज तक तकबीर “अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर ला इलाहा इलल्लाह वा’अल्लाहुअकबर अल्लाहुअकबर वा लिल्लाहिल हम्द” पढ़ने की ताकीद की गई है।
अराफात के दिन का रोजा, जो 9 ज़ील हज्ज को होता है, बहुत फायदेमंद है और यह गुनाहों का कफ्फारा है। इन दिनों में अल्लाह के नाम की तस्बीह, तहमीद, तहलील और तकबीर को अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए। कुल मिलाकर, ज़ील हज्ज के पहले दस दिन इबादत और नेक कामों का बेहतरीन मौका हैं।
आप ने क्या सीखा:
कुर्बानी का त्यौहार मुसलमानों के लिए एक अहम मज़हबी और सामाजिक आयोजन है। ये अल्लाह के लिए अपने ईमान और ईमानदारी को दिखाने का एक खास तरीका है। सही तरीके से कुर्बानी करना और इसका फायदे समझना हर मुसलमान के लिए जरूरी है।
कुर्बानी से हम ये सीखते हैं कि हमें अल्लाह की राह में किसी भी चीज़ की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
उम्मीद करते हैं आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी। अगर आपको कोई राय या सुझाव देना है तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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