Qurbani ki Dua: Assalamualaikum प्यारे दोस्तों और बहनों!माशाअल्लाह, ज़ुल-हिज्जा का मुबारक महीना करीब आ रहा है और इसके साथ ही Bakri Eid 2025 यानी ईद-उल-अज़हा की तैयारियाँ भी शुरू हो जाती हैं। इंडिया में इस साल Bakra Eid 7 जून 2025 को होगी।
दोस्तो। कुर्बानी इस्लाम के पाँच अरकानों में से एक तो नहीं है, लेकिन ये अल्लाह के नज़दीक एक बहुत अहम इबादत और Qurbani ki Dua के साथ अल्लाह को याद करने का एक ख़ास मौका है। ये त्यौहार हमें अल्लाह के प्यारे नबी, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके फरमाबरदार बेटे, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की बेमिसाल कुर्बानी की याद दिलाता है।
कुर्बानी, जिसे Bakra Eid या ईद-उल-अज़हा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म में एक अहम इबादत है। Bakri Eid त्यौहार हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अल्लाह के लिए बेइंतहां तवक्कुल और उनकी द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में मनाया जाता है।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने कलेजे के टुकड़े, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने का फैसला किया। जब वो इस इम्तिहान में कामयाब हुए, तो अल्लाह ने उनकी इस आज़माइश को कुबूल फ़रमाया और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह जन्नत से एक मेमना भेज दिया। इस अज़ीम वाकये की यादगार में, हम मुसलमान हर साल कुर्बानी करते हैं।
कुर्बानी क्यों की जाती है: (Qurbani Kyun Karte Hai)
Eid ul Adh-ha पर कुर्बानी करना उन हर साहिबे निसाब (जिसके पास तयशुदा माली हैसियत हो) मुसलमान मर्द और औरत पर वाजिब है जो मुसाफ़िर न हों। ये सिर्फ जानवर का गोश्त बांटना नहीं है, बल्कि अल्लाह के हुक्म के सामने अपनी सबसे प्यारी चीज़ को भी कुर्बान करने के जज़्बे का इज़हार है। ये अल्लाह के लिए हमारी मुहब्बत और इताअत (आज्ञाकारिता) का सबूत है।
जुमा के दिन की फज़ीलत
कुर्बानी हमें सिखाती है कि हमें अपनी ख्वाहिशात (इच्छाओं) और दुनियावी चीज़ों की मुहब्बत से ज़्यादा अल्लाह की रज़ा को अहमियत देनी चाहिए। ये एक तरह से अल्लाह की राह में हमारी नफ्सानी ख्वाहिशों की कुर्बानी है।
कुर्बानी किस ज़बीह से होती है:
Bakra Eid पर कुर्बानी के लिए कुछ खास किस्म के जानवर शरई हुक्म के मुताबिक होने चाहिए:
- बकरी / बकरा (Goat)
- भेड़ / मेमना (Sheep/Lamb)
- बैल (Cow/Ox)
- ऊंट / ऊंटनी (Camel)
इन जानवरों का सेहतमंद होना और किसी ज़ाहिरी ऐब (नुक्स) से पाक होना ज़रूरी है (जैसे अंधापन, लंगड़ापन, बहुत ज़्यादा कमज़ोरी वगैरह)। साथ ही, उनकी उम्र भी शरई हुक्म के मुताबिक़ होनी चाहिए:
- बकरी/बकरा: कम से कम 1 साल का हो (या उसके आगे के दो दांत निकल आएं हों)।
- भेड़/मेमना: कम से कम 6 महीने का हो (लेकिन अगर वो 1 साल के जानवर जितना मोटा ताज़ा और सेहतमंद दिखता हो)।
- बैल: कम से कम 2 साल के हों।
- ऊंट/ऊंटनी: कम से कम 5 साल के हों।
बड़े जानवर जैसे बैल और ऊंट में 7 लोगों तक की हिस्सेदारी हो सकती है, जबकि भेड़ और बकरी सिर्फ एक शख्स की तरफ से कुर्बान होती है।

कुर्बानी का सुन्नत तरीका: (Qurbani ka Tarika hindi me)
कुर्बानी करने का सही और सुन्नत तरीका हमारे प्यारे नबी, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से हमें सिखाया गया है। कुर्बानी करते वक़्त इन बातों का ख्याल रखना चाहिए:
- नीयत: दिल में पक्की नीयत हो कि ये कुर्बानी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए की जा रही है।
- जानवर के साथ नरमी: जानवर को सुकून से रखें, उसे ज़्यादा तकलीफ न दें। ज़िबह करने वाली जगह तक नरमी से ले जाएं।
- औजार: ज़ीबह करने के लिए छुरी (knife) बहुत तेज़ धार की होनी चाहिए, ताकि ज़ीबह जल्दी और कम तकलीफदेह हो। छुरी जानवर के सामने तेज़ न करें।
- किब्ला की तरफ: जानवर को लिटाकर उसका मुँह किब्ला की तरफ कर दें।
- दुआ पढ़ना: ज़िबह करने से ठीक पहले और करते वक़्त Qurbani ki Dua पढ़ना सुन्नत है।
कुर्बानी का समय: (Qurbani ka time kab hai)
कुर्बानी का समय ईद-उल-अज़हा की नमाज़ के बाद से शुरू होता है और ये तीन दिनों तक जारी रहता है। ये दिन इस्लामी कैलेंडर के 10, 11, और 12 ज़ुलहिज्जा होते हैं। सबसे बेहतर समय पहले दिन की कुर्बानी माना जाता है।
कुर्बानी करते वक्त कुछ दुआएं पढ़ी जाती हैं। ये दुआएं अल्लाह से बरकत और कुर्बानी की कबूलियत की दुआ करती हैं:
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईद के दिन दो मेंढो की कुर्बानी की, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको किब्ला रुख किया तो ये कलिमात इरशाद फरमाएं:

कुर्बानी की दुआ हिंदी में: (Qurbani ki dua Hindi me)
"ईन्नी वज्जहतू वजहीया लिललज़ी फातारस समावाती वल अरदा
हनीफव वमा अना मीनल मुशरीकिन, इन्ना सलाती वा नुसुकी वा महयाया
वा मामाती लिल्लाही रब बील आलमीन,
ला शरीका लहू वा बिज़ालिका उमीरतू वा अना अव्वलू मीनल मुसलीमीन,
अल्लहुम्मा मिनका वा लका अन मुहम्मदिव व उम्मातिही (बिस्मिल्लही वा
अल्लाहू अकबर)"
(मुहम्मदिव व उम्मातिही की जगह जिसकी तरफ से कुरबानी हो उसका
नाम ले और अपनी तरफ से हो तो वा लका अन्नी कहे)
सुनन इब्न माज़ा, जिल्द 3, हदीस 2- हसन

Qurbani Dua in English:
Enni wajjahtu vazheiya lilalzi fataras samavati wal arda Hanifav wama ana minal mushrikin, inna salati wa nusuqi wa mahayaya Wa Maamati Lillahi Rab Beel Alameen, La Sharika Lahu wa Bijalika Umirtu wa Ana Avvlu Meenal Muslimeen, Allahumma minaka wa laka an muhammadiv wa ummatihi (मुहम्मदिव व उम्मातिही की जगह जिसकी तरफ से कुरबानी हो उसका
नाम ले और अपनी तरफ से हो तो वा लका अन्नी कहे)
ज़ीबह करने की दुआ: (Zibah Karne ki dua)
जब ज़बीह को ज़ीबा करें तो उस वक्त ये दुआ पढ़ें:
- कुर्बानी करते वक्त: “बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर”
“Bismillah, Allahu Akbar”
कुर्बानी की अहमियत और समाज में असर:
कुर्बानी सिर्फ अल्लाह की इबादत ही नहीं, बल्कि इसका समाज पर भी बहुत खूबसूरत असर पड़ता है। कुर्बानी का गोश्त तक़सीम (बाँटना) करना इसका एक अहम हिस्सा है। इसे आम तौर पर तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है:
- एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए: ताकि वो अल्लाह की इस नेमत से फायदा उठा सकें।
- एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए: इससे आपसी मुहब्बत और रिश्ते मज़बूत होते हैं।
- एक हिस्सा गरीब और ज़रूरतमंदों के लिए: ये कुर्बानी का सबसे अहम हिस्सा है। इससे उन लोगों तक गोश्त पहुँचता है जो शायद साल में ऐसा खाना अफोर्ड (ख़रीद) नहीं कर पाते। ये समाज में हमदर्दी और बराबरी का जज़्बा पैदा करता है।
कुर्बानी करने के फायदे:
कुर्बानी से हमें दीनी और दुनियावी दोनों तरह के फायदे होते हैं:
- अल्लाह की कुर्बत: ये अल्लाह के सबसे करीब होने वाली इबादतों में से एक है।
- सुन्नत की पैरवी: हम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत पर अमल करते हैं।
- गुनाहों की माफ़ी: सही नीयत से की गई कुर्बानी गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया बन सकती है।
- रूहानी सुकून: अल्लाह के लिए कुछ कुर्बान करने का अहसास दिल को पाक और सुकून देता है।
- गरीबों की मदद: समाज के कमजोर तबके तक गोश्त पहुंचाना एक बहुत बड़ा सदक़ा है।
ज़ील हज्ज के पहले 10 दिन की फजीलत:
ज़ुल-हिज्जा के पहले 10 दिनों की फज़ीलत:
ईद-उल-अज़हा ज़ुल-हिज्जा के महीने में आती है, और इस महीने के पहले दस दिन इस्लाम में बहुत ही मुबारक माने गए हैं। इन दिनों में नेक आमाल का सवाब दूसरे दिनों के मुकाबले बहुत बढ़ जाता है। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह को ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिनों में किए गए नेक अमल से ज़्यादा कोई अमल पसंद नहीं।
इन दिनों में खूब इबादत करनी चाहिए, जैसे नमाज़, रोज़ा (खासकर 9 ज़ुल-हिज्जा यानी अराफात का रोज़ा जो पिछले और अगले साल के गुनाहों का कफ्फारा बन सकता है), सदक़ा, और अल्लाह का ज़िक्र। इन दिनों में तकबीर (अल्लाहु अकबर) कसरत से पढ़ना चाहिए। तकबीर-ए-तशरीक़ (अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर-अल्लाहुअकबर ला इलाहा इलल्लाह वा’अल्लाहुअकबर अल्लाहुअकबर वा लिल्लाहिल हम्द) 9 ज़ुल-हिज्जा की फज्र से लेकर 13 ज़ुल-हिज्जा की असर तक हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना वाजिब है। ज़ुल-हिज्जा के इन मुबारक दिनों की फज़ीलत के बारे में आप Islamweb जैसी वेबसाइट्स पर और जानकारी हासिल कर सकते हैं।
इन दिनों में अल्लाह से खूब दुआएं मांगनी चाहिए, अपनी और दूसरों की भलाई के लिए। जैसे फर्ज नमाज़ के बाद की दुआएं या Nek aulad ki dua जैसी दूसरी हाजतों के लिए।
अराफात के दिन का रोजा, जो 9 ज़ील हज्ज को होता है, बहुत फायदेमंद है और यह गुनाहों का कफ्फारा है। इन दिनों में अल्लाह के नाम की तस्बीह, तहमीद, तहलील और तकबीर को अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए। कुल मिलाकर, ज़ील हज्ज के पहले दस दिन इबादत और नेक कामों का बेहतरीन मौका हैं।
आप ने क्या सीखा:
Qurbani सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि अल्लाह के लिए इख्लास (खुलूस) और फरमाबरदारी का सबूत है। इसका सही तरीका और मकसद समझना ज़रूरी है। अपनी कुर्बानी को अल्लाह की बारगाह में कुबूल करवाने के लिए सही नीयत, शरई हुक्म के मुताबिक जानवर और सुन्नत तरीके से ज़ीबह करना ज़रूरी है।
ये त्यौहार हमें अल्लाह के हुक्म के आगे झुकना और अपनी प्यारी चीज़ों को उसकी राह में कुर्बान करना सिखाता है।
उम्मीद है Qurbani ki Dua Ka Guide आपके लिए मुफीद रहा होगा। अगर आपके ज़हन में कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। अल्लाह हम सबको सही तरीके से कुर्बानी करने और उसकी बरकतों से फायदा उठाने की तौफीक दे। आमीन।
2025 में बकरा ईद कब है?
साल 2025 में ईद उल अजहा यानी बकरा ईद 7 जून 2025 से शुरू होगी और 9 जून 2025 तक रहेगी। इन 3 दिनों में हर साहिबे निसाब पर वाजिब कुर्बानी करना वाजिब है।
अगर कोई खुद कुर्बानी न कर सके तो क्या करे?
अगर कोई शख्स खुद जानवर ज़िबह नहीं कर सकता, तो वो किसी ऐसे शख्स से कुर्बानी करवा सकता है जो ज़िबह करना जानता हो और शरई हुक्म का पाबंद हो। बस कुर्बानी करवाते वक़्त नीयत उस शख्स की तरफ से होनी चाहिए जिसकी कुर्बानी है, और ज़िबह करने वाला “बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर” कहे।
अगर किसी वजह से कुर्बानी का वक़्त निकल जाए तो क्या करना चाहिए?
अगर किसी वाजिब होने वाले शख्स ने कुर्बानी के मुकर्रर वक़्त (10, 11, 12 ज़ुल-हिज्जा के सूरज डूबने तक) में कुर्बानी नहीं की, तो उस पर कुर्बानी बाकी रह गई। अब उसे उस जानवर की कीमत सदक़ा करनी होगी जो वो कुर्बान करने वाला था। ये गोश्त सदक़ा करने से बेहतर है।
कुर्बानी का जानवर खरीदते वक़्त क्या ध्यान रखना चाहिए?
जानवर खरीदते वक़्त उसकी सेहत, उम्र और ज़ाहिरी ऐबों से पाक होना ज़रूर चेक करें, जैसा कि ऊपर बताया गया है। बाज़ार के रेट का अंदाज़ा लगाएं और हलाल कमाई से ही जानवर खरीदें। जानवर के साथ नरमी से पेश आएं।
1 thought on “BakrEid 2025: कुर्बानी का तरीका और दुआ हिंदी में | Qurbani ki Dua”