Sehri Ki Dua in Hindi: रमज़ान का महीना मुसलमानों के लिए बहुत ख़ास होता है। ये बरकतों और रहमतों से भरा हुआ महीना है। इस दौरान लोग रोज़े रखते हैं और इबादत में मशगूल रहते हैं। रोज़े की शुरुआत सेहरी से होती है और इसका अपना एक अलग मज़ा होता है। सेहरी में की जाने वाली दुआ का बहुत महत्व है। आइए, हम आपको सेहरी की दुआ और उसके मानी (अर्थ) के बारे में बताते हैं।
रमज़ान की अहमियत
रमज़ान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत ख़ास होता है। इसमें लोग रोज़े रखते हैं, जो सुबह की सेहरी से शुरू होकर शाम की इफ्तार तक चलता है। “अपने शहर का इफ्तार का वक्त जानने के लिए Ramzan Iftar Tool 2025 का इस्तमाल करें” रोज़े का मकसद सिर्फ भूखे-प्यासे रहना नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, ताज़गी और इबादत का महीना है।
रमज़ान में लोग ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ पढ़ते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं और अल्लाह से मग़फिरत (माफी) मांगते हैं। यह महीना इंसान को अपने गुनाहों से तौबा करने और अल्लाह के करीब जाने का मौका देता है।
सेहरी करना सुन्नत है
सेहरी का वक्त फज्र से पहले का होता है। यह समय बहुत बरकत वाला माना जाता है। सेहरी करना सुन्नत है और इसे नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कभी नहीं छोड़ा। सेहरी करने से रोज़े में ताक़त मिलती है और यह आपकी इबादत में मदद करता है।
सेहरी के वक्त उठकर दुआएं करना और अल्लाह से हिदायत मांगना बहुत फायदेमंद होता है। सेहरी के दौरान की गई दुआओं को अल्लाह जल्दी क़ुबूल करता है।

Sehri Ki Dua in Hindi
दुआ: “व बि सव्मि ग़दन नवैतु मिन शहरी रमज़ान”
तर्जुमा: “मैंने रमज़ान के महीने के कल के रोज़े की नीयत की।”
Ramazan ke Roze ki Niyat
Roman English: “Wa bisawmi ghadin nawaitu min shahri Ramadan.”
Roza Rakhne ki Dua
“व बि सव्मि ग़दन नवैतु मिन शहरी रमज़ान” दुआ का मतलब है कि आप अगले दिन के रोज़े की नीयत कर रहे हैं। नीयत का मतलब होता है आप मन में यह ठान रहे हैं कि आप अल्लाह के हुक्म के मुताबिक रोज़ा रखेंगे। नीयत बहुत अहम होती है, क्योंकि ये आपके इरादे को मज़बूती देती है। याद रहें अगर आपने पहले से ही रोज़ा रखने की नियत की थी, लेकिन ये दुआ नही पढ़ी और सेहरी का वक्त खत्म हो गया तो ऐसे में आप अपना रोज़ा कंटिन्यू कर सकते हैं। क्योंकि आपने पहले ही रोज़े की नियत कर ली थी।
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रोज़ा रखने के लिए इस दुआ को पढ़ना लाज़िम और ज़रूरी नहीं है। बस नियत ही काफी है।
रमज़ान की तैयारियाँ
रमज़ान आने से पहले लोग कई तैयारियाँ करते हैं। घरों में सफाई होती है, ताकि इबादत का माहौल अच्छा रहे। मस्जिदों में रौनक बढ़ जाती है और लोग तरावीह की नमाज़ के लिए तैयारी करते हैं।
रमज़ान में लोग इफ्तार के लिए भी खास तैयारियाँ करते हैं। तरह-तरह के पकवान बनते हैं, लेकिन याद रखें कि इस महीने का असल मकसद इबादत और खुदा के करीब जाना है, न कि खाने-पीने में लुत्फ लेना।
इफ्तार और इबादत
इफ्तार का वक्त भी बहुत खास होता है। पूरे दिन रोज़ा रखने के बाद जब इफ्तार का वक्त आता है, तो वह खुशी का पल होता है। इफ्तार से पहले की गई दुआ भी बहुत अहम होती है।
इफ्तार के बाद लोग मगरीब की नमाज़ अदा करते हैं और फिर तरावीह की नमाज़ पढ़ते हैं। यह वक्त इबादत का होता है और इस समय की गई इबादत का सवाब कई गुना बढ़ जाता है।
रमज़ान में सदका और खैरात
रमज़ान का महीना सदका और खैरात के लिए भी बहुत अहम है। इस महीने में नेकियाँ करने का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं और अल्लाह की राह में दान देते हैं।
यह महीना हमें इंसानियत और भाईचारे का सबक भी देता है। रमज़ान में हम सीखते हैं कि दूसरों की मदद कैसे करनी चाहिए और सबके साथ मोहब्बत से कैसे पेश आना चाहिए।
आखरी अल्फाज़
रमज़ान का महीना खुद को सुधारने और अल्लाह के करीब जाने का बेहतरीन मौका है। Ramzan me Sehri ki Dua के साथ रोज़ा शुरू करके, इबादत और सदका-खैरात के ज़रिये हम अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकते हैं। अल्लाह से दुआ है कि हम सबको इस रमज़ान में खूब इबादत करने और नेकियाँ कमाने की तौफ़ीक़ दे।
रमज़ान की तैयारियों का लुत्फ लें, सेहरी की दुआ पढ़ें और अल्लाह की रहमतों का हिस्सा बनें। रमज़ान मुबारक!
FAQs about Sehri and Ramzan
सेहरी का सही वक्त कब होता है?
सेहरी का वक्त फज्र की अज़ान से पहले तक होता है। इस दौरान खाने-पीने की चीजें खत्म करनी होती हैं।
सेहरी में कौन सी दुआ पढ़नी चाहिए?
सेहरी की दुआ: “व बि सव्मि ग़दन नवैतु मिन शहरी रमज़ान”। इसका मतलब है, “मैंने रमज़ान के महीने के कल के रोज़े की नीयत की।”
सेहरी की दुआ पढ़ना भूल जाएं तो क्या करें?
रोज़ा रखने के लिए सेहरी की दुआ को पढ़ना लाज़िम और ज़रूरी नहीं है। बस नियत ही काफी है। अगर आपको याद है तो ज़रूर पढ़ें।
रमज़ान में रोज़े का मकसद क्या है?
रोज़े का मकसद नफ्ज़ पर काबू करना, ताज़गी और अल्लाह के करीब जाना है। यह महीना इबादत और तौबा का है।
रमज़ान में तरावीह की नमाज़ का क्या महत्व है?
तरावीह की नमाज़ रमज़ान की रातों में पढ़ी जाती है। यह विशेष नमाज़ होती है और इसका सवाब बहुत होता है।
रमज़ान में सदका और खैरात क्यों जरूरी है?
रमज़ान में नेकियाँ करने का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। सदका और खैरात से जरूरतमंदों की मदद होती है और अल्लाह की रहमतें मिलती हैं।
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